कुण्डलियाँ - त्रिलोक सिंह ठकुरेला - 1

22-06-2014

कुण्डलियाँ - त्रिलोक सिंह ठकुरेला - 1

त्रिलोक सिंह ठकुरेला

भातीं सब बातें तभी, जब हो स्वस्थ शरीर।
लगे बसंत सुहावना, सुख से भरे समीर॥
सुख से भरे समीर, मेघ मन को हर लेते।
कोयल, चातक मोर, सभी अगणित सुख देते।
'ठकुरेला' कविराय, बहारें दौड़ी आतीं।
तन, मन रहे अस्वस्थ, कौन सी बातें भातीं॥

 

हँसना सेहत के लिये, अति हितकारी मीत।
कभी न करें मुकाबला, मधु, मेवा, नवनीत॥
मधु, मेवा, नवनीत, दूध, दधि, कुछ भी खायेँ।
अवसर हो उपयुक्त, साथियो हँसे - हँसायें।
'ठकुरेला' कविराय, पास हँसमुख के बसना।
रखो समय का ध्यान, कभी असमय मत हँसना॥

 

खटिया छोड़ें भोर में, पीवें ठण्डा नीर।
मनुआ खुशियों से भरे, रहे निरोग शरीर॥
रहे निरोग शरीर, वैद्य घर कभी न आये।
यदि कर लें व्यायाम, वज्र सा तन बन जाये।
'ठकुरेला' कविराय, भली है सुख की टटिया।
जल्दी सोये नित्य, शीघ्र ही छोड़ें खटिया॥

 

मिलती है मन को खुशी, जब हों दूर विकार।
नहीं रखा हो शीश पर, चिंताओं का भार॥
चिंताओं का भार, द्वेष का भाव नहीं हो।
जगत लगे परिवार, आदमी भले कहीं हो।
'ठकुरेला' कविराय, सुखों की बगिया खिलती।
खुशी बाँटकर, मित्र, खुशी बदले में मिलती॥

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