कुलक्षिणी

15-12-2019

 कुलक्षिणी

विनोद महर्षि 'अप्रिय' (अंक: 146, दिसंबर द्वितीय, 2019 में प्रकाशित)

पैदा हुई तो दादी बोली
जन्मी आज कुलक्षिणी
लाड़ जताया माँ ने जब
तो वो भी कहलाई कुलक्षिणी

 

बड़ी हुई तो चंचलता छाई
ख़ुशियों को भर-भर कर लाई
फिर भी बोल उठा उसका पिता
कहाँ से आई है तू कुलक्षिणी


बेटे को सर आँखों पे रखा
बिटिया को पाँवों तले
उसे घी से चुपड़ी रोटियाँ खिलाई
वह सूखी खाके भी कहलाई कुलक्षिणी


यौवन में क़दम रखा तो
स्थितियाँ ओर भी प्रखर हुईं
सीधी साधी सयानी बाला
बिन बोले भी कहलाई कुलक्षिणी


घर में हर किसी का मान बढ़ाया
हर ग़म को अपनी ढाल बनाया
जब विद्यालय में पढ़ने जाए
फिर भी गाँव वाले कहे उसे कुलक्षिणी


किसी मनचले ने उसे कुछ कह दिया
घर आई रोती बिलखती वो
एक बात भी न सुनी उसकी
बिन गलती कहलाई वो कुलक्षिणी


उससे बिना पूछे उसका ब्याह रचाया
उसने विष को भी अमृत बनाया
ससुराल में भी उसने सबका मान बढाया
फिर भी बहू कहलाई कुलक्षिणी

 

समय का पहिया चलता रहा
अपनों के लिए उसने सब सहा
जब अंत समय नज़दीक आया
सबने कहा उसे ’मर गई आज कुलक्षिणी’

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