ख़ुद को ऊँचा जो नाप जाता है

01-07-2020

ख़ुद को ऊँचा जो नाप जाता है

कु. सुरेश सांगवान 'सरू’ (अंक: 159, जुलाई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

ख़ुद को ऊँचा जो नाप जाता है
बात झूठी वही बनाता है


दे न इल्ज़ाम बेवफ़ाई का
कौन पत्ते हरे गिराता है


एक हँसता हुआ परी चेहरा
हौसले पर बहार लाता है


चाहिए जीत ही यहाँ सबको 
हार कर कौन गुनगुनाता है 


आँख जब अश्कबार होती है
दिल का तूफ़ान बैठ जाता है


मैं तो जाए बिना नहीं रुकती
जब कोई प्यार से बुलाता है 


मैं सितमगर उसे कहूँ क्यूँकर
वो मिरा ज़ोर आज़माता है


धड़कते दिल के आशियाने में 
बारहा ग़म ज़रूर आता है 


चाहिए अब हवा मुझे यारो
दिल धुएँ पे धुआँ उठाता है 


ज़िंदगी रात है अँधेरे की
इश्क़ रौशन इसे बनाता है 


और तो कौन किसकी माने है 
पेट ही आपको नचाता है 


पाठ अच्छे से जो समझ जाए
दूसरों को वही पढ़ाता है

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