ख़ूबसूरती या ख़ूबसूरत सोच
वैदेही कुमारीज़िंदगी तो बदली हमारी
पर बदली ना सोच तुम्हारी
देते जो ताना तुम हरदम
सोचा तुमने बीती क्या मुझ पर
सुन्दर काया का जो तुमने स्वप्न सजाया
मेरा सुन्दर मन नज़र न आया
दोष नहीं है तेरा सिर्फ़
समाज ने सिखालाया ये फ़र्क़
गोरा रंग सबको भाया
बाह्य ख़ूबसूरती का फैला साया
मन की सुंदरता का मोल न जाना
तुमने मुझको न पहचाना
मुझको है कहना बस इतना
सबसे अच्छी मन की सुंदरता।