ख़ूबसूरत बेचैनी
पूनम चन्द्रा ’मनु’हवाओं में बहती तुम्हारी ख़ुशबू
उन “लम्हों” को ज़मीं पर बिखेर कर
भँवर बना देती है
न क़दम ही चलते हैं . . .
न सोच . . .
एक दरिया बह निकलता है
. . .ख़्यालों का
जिस पर सदियों से
बाँध बनाने की नाकाम कोशिश की है मैंने
कुछ दिनों के लिए ही सही
मेरी ये आदत तुम पहन लो
महसूस तो करो . . .
ये बेचैनी कितनी ख़ूबसूरत है!
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