कल्पना की झील में
वास्तविकता की उफनती
लहरों पर
भावनाओं की डोलती नाव
और मैं किनारा ढूँढता हूँ
लालसा के जंगल में
कुंठा की दलदल
धँसता हुआ
मेरा अस्तित्व
और मैं तिनके का सहारा ढूँढता हूँ
जीवन के मरु में
बीते क्षणों की मरीचिकायें
भागता हुआ
दिशाहीन बदहवास साया
और मैं लौटने का रास्ता ढूँढता हूँ
अनजाने से देश में
मुखौटों की भीड़
कोलाहल में खो चुका
अपना ही परिचय
और मैं दर्पण में अपना चेहरा ढूँढता हूँ