खेतों में बसती लक्ष्मी

15-08-2021

खेतों में बसती लक्ष्मी

डॉ. कौशल श्रीवास्तव (अंक: 187, अगस्त द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

शस्य-श्यामला ग्रामीण धरती, हरा-भरा संसार 
हरित क्रांति बनी सहेली, खेतों का अनुपम शृंगार  
खेतों में उपजे धान बाजरा, लक्ष्मी का शुभ्र निवास 
पेट भरा पूरी जनता का, ‘पी-एल ४८०’ बना इतिहास।
 
भारत देता दुनिया को चावल गेहूँ और अन्न विशेष  
किसान बन गए व्यापारी, कृषि विज्ञान का है उन्मेष 
‘एम बी ए’ की डिग्री लेकर युवा बने उन्नत किसान 
एक हाथ में मोबाइल, दूसरे से बीजारोपण    
पैर पड़े धरती के ऊपर, अंगुली चलती ‘गूगल’ पर 
कैसा है यह दृश्य अनोखा, नयी शताब्दी नया वरण।
 
जलवायु का रखते ज्ञान, कब सूखा कब वर्षा 
पौधों को कब दें खाद-उर्वरक, कब दें कुँए से पानी 
बाज़ार भाव का रखते ध्यान, मोबाइल है क़ाबिल 
उन्नत किसान लक्ष्मी के भाई, नयी-नयी चतुराई 
अन्नदाता हैं किसान, दुनिया देती उन्हें बधाई! 
 
खेतों में बसती हैं लक्ष्मी, हम कहते यही कहानी 
धन-धान्य से पूरित होंगे, हम होंगे अपने स्वामी! 
 
लाल मुरेठा, लाल वस्त्र, उनकी अपनी पहचान 
लाल रंग में दिल की लालिमा, प्रेम भरा आयाम 
स्वागत करे अतिथि का, यह है उनका संस्कार 
नमन योग्य तुम सदा रहोगे – हे भारत के किसान!  
हमें याद है “जय जवान, जय किसान” का नारा 
लेखनी मेरी धन्य हुई – लिखकर हाल तुम्हारा।
 
सरसों के पीले फूलों पर झूम रही ग्रामीण बाला 
नर-नारी मिलकर नृत्य करें, खेत बना रंगशाला!! 
 
(संकेत : PL 480, खाद्यान सहायता के लिए अमरीकी क़ानून) 

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