कविता
गुरुदेव प्रजापति 'फोरम'मूल कवि : दक्षा पटेल
अनुवादक : गुरुदेव प्रजापति
(गुजराती भाषा से हिन्दी भाषा में अनुवाद)
साड़ी पसंद करने में
और मैचिंग ब्लाउज़ ढूँढने में
ऑफ़िस जाने में देरी हो गई
गाड़ी
चौड़े रास्ते दौड़ती हुई
तंग गली में मुड़ी
पेड़ के नीचे खड़े एक साइकिल वाले ने
पैडल पे पैर रखकर
साइकिल दौड़ाई
बैलेंस करते हुए साइकिल पे
सवार हो गया।
आगे साइकिल
पीछे गाड़ी
क्रोधित हो बारी बारी चार-छह हॉर्न लगाए
पर हवा निगल गई
फिर भी मन मना के
उसके पीछे ठेले कि तरह
गाड़ी चलाते हुए
देखती रही उसकी नीली शर्ट
झुके कन्धे
और याद आ गए
साइकिल पे पीछे बिठा के
पाठशाला छोड़ने आते पिताजी
साइकिल के पीछे-पीछे
गाड़ी ठेले कि तरह चलती है
मन करता है
वह अनजाना साइकिल सवार
मेरी गाड़ी के आगे से
कभी भी ना हटे
चाहे देर हो जाए।