2122 1212 22
कौन समझा है कौन जाना है
उम्र भर ये चला चली क्या है
है चलन ये गए ज़माने का
अब उसूलों पे कौन चलता है
देखकर तो पता नहीं चलता
कौन मीठा है कौन खारा है
दर्द फैला हुआ तो है हरसू
बस कहीं कम कहीं ज़ियादा है
मैंने महबूब की नज़ारत में
एक खिलता गुलाब देखा है
जाल जिसमें बना लिया तुमने
मकड़ियों ये मकान किसका है
है डगर तो वही पुरानी सी
प्यार में सब नया नया सा है
चाहिए जाम आजकल सबको
सब्र के घूँट कौन पीता है