है ये रणभूमि कैसी ना जाने कोई,
जिसका मिलता ना कोई आर-पार जहाँ पर,
हलक में है अटकी श्वांस सबकी,
लेकिन करने चले हैं एक शिकार यहाँ पर!
रौद्र है रुख प्रकृति का भी अब तो,
वो भी तैयार है देखने को हाहाकार,
है नही गुन्जाइश किसी एकलव्य की,
बन रहे हैं सभी बस द्रोणाचार्य यहाँ पर!
उलझनों में ही बनता है उद्देश्य सबका,
अविकसित है संस्कार सबका जहाँ पर,
पुरस्कार का अलंकार लगाते हैं वो,
तिरस्कार का दाग छिपता नहीं जिनसे यहाँ पर,
हँस रहे हैं सभी योद्धा एक गौरव के साथ,
कि एक भी अर्जुन है नहीं वहाँ अब,
हैं अनगिनत केशव ही लिए -
अपने ज्ञान चक्षु हज़ार यहाँ पर!
रणनीति से प्रबल है कूटनीति,
तुच्छ तीरों से क्या होगा वहाँ पर?
एक नन्हा प्यादा भी लिए है,
विशाल शस्त्रागार यहाँ पर!
देखने को मिलता है चमत्कार कहाँ ऐसा,
लिए अपना विस्मित सरोकार जहाँ पर
व्याकुल हो रहा कर्ण ही अब तो,
करने को सबका सत्कार यहाँ पर!
बस आसानी से करते हैं दरकिनार अद्भुत वार,
वो हर एक शैया पर लेटे भीष्म जहाँ पर,
अकसर मिलेंगे ऐसे संजय जो ख़ुद ही हैं,
किसी महायुद्ध के सूत्रधार यहाँ पर!
बन जाए चीर हरण कारण एक धर्मयुद्ध का -
ये पुरानी बात है अब जहाँ पर, क्योंकि,
होते हैं ऐसे अनगिनत अपहरण रोज़ अब,
क्योंकि है सबसे शुष्क प्रमुख सरकार यहाँ पर!
शायद वक्त वो आ गया है जिसे जान ले वो चक्रधर,
मुस्कुरा कर झेलने में माहिर हम अब हर प्रहार हैं,
तुच्छ से भी तुच्छ होते जा रहे अब,
जो कभी किसी से कम ना थे -
आखिर हैं हम ही तो एकलव्य और अभिमन्यु के,
कलयुगी अवतार यहाँ पर,
कलयुगी अवतार यहाँ पर!!!