कल के खेल
शिवेन्द्र यादवकभी हम खेला करते थे
खिलौनों से, धूल-मिट्टी, पत्तों, डालों से
खुले मैदानो में।
बाबा बताते हैं
वो भी ऐसे ही खेला करते थे,
पर आज मेरा बाबू (बच्चा)
खेलता है
विद्युत उपकरणों से
घर के अंदर
कम्प्यूटर और मोबाइलों से।
कल इनके बाबू
किससे खेलेंगे
उपकरणों से, खिलौनों से
पत्तों, डालों से
या?
शायद अतीत की कहानी
उन्हें तब याद आयेगी
जब समय की नाव
सागर पार कर जायेगी।