कैसे कटेंगे पहाड़ से ये दिन
निलेश जोशी 'विनायका'अभी अभी तो उदित हुआ हूँ
किरणों का तेज तो आना है
कहता सूरज मुझको तप कर
तम दुनिया से दूर भगाना है।
मुझसे डर कर मत भागो तुम
क्या रह पाओगे तुम मेरे बिन
धीरे-धीरे क़दम बढ़ाओ मत सोचो
कैसे कटेंगे पहाड़ से ये दिन।
ऊँचे पहाड़ पर पेड़ उग जाते
बूँद बूँद से नदियाँ बहती हैं
अपने भाग्य पर रोने वालो
कलियाँ काँटों में फलती हैं।
ना वसंत हो केवल हो पतझड़
हो सन्नाटा सारा दिन
मत मानो मन में तुम अपने
कैसे कटेंगे पहाड़ से ये दिन।
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