कहो कबीर!
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’कहो कबीर!
मिला है तुमसे?
ऐसा तुलसीदास
सुख-सुविधा का
परम मित्र है
आता अस्सी घाट
कहीं सुना है
लोग बताते
दिल्ली का है लाट
फटकी नहीं
असुविधा कोई
कोई हवा-बतास
काशी छोड़
बसे तुम मगहर
होगी कोई बात
खुली सड़क पर
तुम्हें छोड़कर
होगी सोई रात
जिसके घर तक
नहीं पहुँचता
सड़कछाप उपवास
माना! हुआ
विकास बहुत कुछ
रोटी है बेहाल
महँगाई का
हाल बुरा है
चुप्पी की हड़ताल
नहीं बुझा पाया
जो अब तक
मूँगफली की प्यास
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