कहें   कैसे   कि    मेरे   नैन    तर   नहीं  होते 

15-08-2021

कहें   कैसे   कि    मेरे   नैन    तर   नहीं  होते 

संदीप कुमार तिवारी 'बेघर’ (अंक: 187, अगस्त द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

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कहें   कैसे   कि    मेरे   नैन    तर   नहीं  होते 
किसी  की  याद   में  हम  रातभर  नहीं  सोते
 
नहीं मालूम कब  हम ख़ुद 'के' दिल 'में' रहते हैं
हमेशा  ख़ुद  'के'  होते   हैं   मगर   नहीं  होते
 
हमेशा   बच  'के'   राहों   पे  भला   चलें  कैसे 
जहाँ  में  हर   जगह   सच्चे  डगर  नहीं  होते
 
नगर भर  घूम  लें  पर  प्यास  भी  नहीं  होती
जहाँ  पर  प्यास  लगती फिर  नगर नहीं होते
 
सभी  के  हाथ  उठते   हैं   दुआ  'में'  तेरे  रब
वही  हम  हैं  दुआ  जिनके  असर  नहीं  होते 
 
'जो' दिल वालों 'कि' बस्ती में लगें 'हो' रहने जी
कभी  तन्हा 'ही' उनके   ये   सफ़र  नहीं  होते 
 
जलाए  कौन   मेरे  दिल  'का'  आशियां 'बेघर' 
'जो' दिलवाले 'हैं' उनके  भू 'पे'  घर  नहीं होते

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