ये किसकी नयना यूँ झड़ी
पत्थर को मोम जो कर गई
वर्षों की सूखी रेत में
सम्वेदना सी भर गई ।
सागर में जो ये उबाल है
तूफ़ान या सैलाब है
करुणा भरी चीत्कार ये
किसके हृदय की पुकार है
फिर से दीया किसका बुझा
नभ कालिमा से भर गया
ये साँझ फिर क्यों हहा रही
अमृत कलश अलसा रही
वो किसकी आहें आ रहीं
जो दिल को यूँ दहला रही
माँ है, पिता या भाई है?
या पुत्र की अगुआई है?
पश्चिम दिशा की ओर से
जो रोशनी सी आ रही
दुल्हन ने किया शृंगार या
जलती चिता की आग है?
हे राम! अब तो बस करो
थोड़ी कृपा व रहम करो
कलुषित पड़ी है चेतना
देवत्व से निर्मल करो
जीवन न अब कुछ शेष है
अब बस यहाँ अवशेष है
जो है बचा उसे रक्ष दो
बस प्राण इनकी बख़्श दो