कहानीकार

07-01-2016

कहानीकार

हेमंत शेष

बचपन में वह एक डॉक्टर बनने की सोचता था, थोड़ा और बड़े होने पर एयरफोर्स में पायलेट फिर उसे वक़ालत करने का ख़याल आया या आर्किटेक्ट या इन्जीनियर बन जाने का।

उसकी इच्छा एकाउन्टेंट बनने की होती थी कभी अभिनेता बनने की। कभी वह किसी पाँच सितारा होटल की बार का बारमैन बनना चाहता था तो कभी व्यापारी या कम्प्यूटर-विशेषज्ञ, होटल में शेफ़ बने का ख़्याल भी उसे आता था या डेंटिस्ट बन जाने का भी। उसकी इच्छा थी वह प्रशासन में जाए और अफ़सर बने या हो सके तो रेलवे में गार्ड या इंजन ड्राइवर। कभी उसे प्रोफ़ेसर बन जाने की तबियत होती थी तो कभी शास्त्रीय संगीत कलाकार।

कमांडो-सैनिक, टैक्सी ड्राइवर, दार्शनिक, अध्यापक, माली, जज, दुकानदार, जासूस, नौसैनिक, बैंककर्मी, कसाई, क्रिकेट का एम्पायर, पशु-चिकित्सक, डेयरी-संचालक, कब्र खोदने वाला, क्लर्क, इंटीरियर डेकोरेटर, फिल्म-निर्देशक, अर्थशास्त्री, संपादक, पहलवान, इलेक्ट्रीशियन, एस्टेट एजेंट, वास्तुशास्त्री, किसान, आलोचक, जौहरी, एक्स-रे टेक्नीशियन, दर्जी, पत्रकार, मछुआरा, आग बुझाने वाले दस्ते का इंचार्ज, मैनेजर, न्यूज़ रीडर, हेयरड्रेसर, संवाददाता, बाग़वान, ज्योतिषी, खिलाड़ी, समाजशास्त्री, सर्वेयर, टेलीफोन ऑपरेटर, जिम-प्रशिक्षक, टाइपिस्ट, पुलिसकर्मी, फोटोग्राफर, खिलाड़ी, मेकपमैन, वेटर, प्लंबर, राजनेता, रिसेप्शनिस्ट, सेल्समेन, लायब्रेरियन, मजदूर, सर्कस का जोकर, बैंक का गार्ड, मुनीम, दूधिया, नेता, धर्मगुरु, टेक्निशियन, शोफर, टूरिस्ट-गाइड, कारीगर, वैल्डर, चित्रकार, वैज्ञानिक और जेल-वार्डन जैसे काम भी उसे आकर्षित करते थे और वह लगातार इन में से कुछ न कुछ बन जाने की सोचता रहता था।

वह इतना कर्मठ था कि उपर्युक्त में से कुछ भी नहीं बन सका- अंततः वह कहानीकार बन गया, जिसने एक भी कहानी नहीं लिखी- केवल कहानियाँ लिखने के बारे में सोचा।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें