कड़क चाय की प्याली
ऋचा तिवारीपौष माह की ठंडक हो
जब घनघोर कुहासा छाया हो
जब नाक हमारी ठंडी हो और
दाँतों की कटकटाहट संग
सर्द से होती सिहरन हो
तब मिलना तुम हमसे
उन सड़क की पैदल राहों पर
जहाँ, किनारे लगते ठेलों से
उबलती भाप छोड़ती
कोहरे से घुलती-मिलती
कुल्हड़ में सौंधी ख़ुशबू लिए
एक कड़क चाय की प्याली हो॥