कबीर छंद – 001

15-04-2021

कबीर छंद – 001

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 179, अप्रैल द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

कबीर छंद
इसके प्रत्येक चरण में 27 मात्राएँ तथा 16, 11 मात्राओं पर यति चरणान्त में 21("गुरु-लघु"); क्रमागत दो-दो चरण समतुकांत होते हैं।


1.
हे कृष्ण तुम्हारा ध्यान करूँ, अब तो आओ पास।
मोर मुकुट पीतांबर धारी, बस तेरी ही आस॥
मन मोहन मुरलीधर प्यारे, राधा के प्रियवंत।
अधर बाँसुरी केशव साजे, भक्तों के भगवंत॥
2.
कितनी मोहक कितनी प्यारी, होंठों पर मुस्कान।
मधुर मृदुल नैना कजरारे, जीवन के आधान॥
एक बार तुझको जो देखे, जीवन होता धन्य।
मेरे मन मंदिर के अंदर, तेरे सिवा न अन्य॥
3.
ज्ञान ध्यान से तुमको देखा, मिला नहीं है छोर।
भक्ति भाव से अब में देखूँ, कान्हा तेरी और॥
मन से मैं तुझको भजता हूँ, करो भक्ति स्वीकार।  
तन मन धन सब तुझको अर्पण, तू जीवन आधार॥
4.
मुरली के सारे स्वर भर दो, महकें मेरे छंद।
मेरी कवितायें बन जाएँ, जन जन का आनंद।
मेरे लेखन में हो केशव, सरस्वती का वास।
हरेक मन की व्यथा लिखूँ मैं, लिखूँ आपका रास।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

काव्य नाटक
गीत-नवगीत
कविता
दोहे
लघुकथा
कविता - हाइकु
नाटक
कविता-मुक्तक
वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
चिन्तन
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
सामाजिक आलेख
बाल साहित्य कविता
अनूदित कविता
साहित्यिक आलेख
किशोर साहित्य कविता
कहानी
एकांकी
स्मृति लेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में