कबीर हुए

अविनाश ब्यौहार (अंक: 182, जून प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

कोर्ट-कचहरी के सपूत
दावागीर हुए।
 
हैं पैसों के
यार वकील।
न्याय की बुझती
है कंदील॥
 
रुग्ण नैतिकता बोली-
लोग बेपीर हुए।
 
मानव में 
चरित्र नहीं है।
औ फूलों का
इत्र नहीं है॥
 
कुशासन देखा दफ़्तर का
तो कबीर हुए।
 
पराया धन 
हुई हरियाली।
दें थकन को
चाय की प्याली॥
 
है पतझर ऐसा लगा
मानो फ़क़ीर हुए।

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