कभी कभी लगता है
संजय कुमारकभी कभी लगता है
इस ज़िंदगी को
लिख कर एक पंक्ति में
लगा दूँ पूर्णविराम
कभी कभी लगता है
क्यों न लिखूँ
अरबों -खरबों
पंक्तियाँ और
फिर लिख दूँ
क्रमशः
कभी कभी लगता है
बनाऊँ कोलाज़
अनुभवों का
और चस्पा दूँ
इतिहास पर
कभी कभी लगता है
क्यों न बनाऊँ
अधूरा चित्र
आसमान का और
कूचियाँ बाँट दूँ
चींटियों को
कभी कभी लगता है
कभी कभी लगता है