कामना उर्फ़ कल्पना

16-12-2015

कामना उर्फ़ कल्पना

नीरजा द्विवेदी

(पुनर्जन्म पर आधारित सत्य घटना)

 

इस वर्ष होली के अवसर पर, विवेक खंड गोमती नगर के योग संगठन के अनुनाइयों के होली मिलन का कार्यक्रम मेरे आवास पर आयोजित किया गया था। कार्यक्रम समाप्त होने के उपरान्त क्रमशः सब सदस्य धीरे-धीरे विदा हो गये, केवल श्रीमती सरिता कपूर एवं उनके पति-सेवा निवृत्त डी.जी. हेल्थ डॉक्टर कपूर और श्रीमती नीली श्रीवास्तव एवं उनके इन्जीनियर पति श्री रवि प्रकाश श्रीवास्तव कुछ देर गप्पें मारने के लिये रुक गये।

श्रीमती कपूर जो एक बुज़ुर्ग, सुलझी हुई, धार्मिक एवं सदा समाज सेवा में रत रहने वाली महिला हैं, की श्रीमती नीली श्रीवास्तव से धार्मिक चर्चा प्रारम्भ हो गई। श्रीमती कपूर ने कहा, “जीवन और मृत्यु एक शाश्वत सत्य है। जिनकी आत्मा अपनी कामनाओं और वासनाओं पर अंकुश लगा लेती है, उनकी मृत्यु के उपरान्त मुक्ति हो जाती है, परन्तु जो आत्मायें अकाल मृत्यु के कारण या अपनी प्रवृत्ति के कारण अतृप्त रह जाती हैं, वे पुनर्जन्म लेती हैं। पहले मैं इन बातों पर विश्वास नहीं करती थी पर जब अपनी आँखों से देखा तो चकित रह गई।” मैं अपना काम समेट रही थी परन्तु पुनर्जन्म की बात सुनकर मेरे कान खड़े हो गये क्योंकि मुझे अपनी पुस्तक ”अलौकिक संस्मरण” को पूरा करने के लिये कुछ घटनाओं की आवश्यकता थी। मैं अपना कार्य बीच में छोड़ कर उनके पास पहुँच गई और उत्सुकता से उस घटना की जानकारी चाही। डॉक्टर कपूर कई बार चलने के लिये कह चुके थे अतः वह बोलीं, “यह बड़ी लम्बी कहानी है, सुनाने में समय लगेगा।” मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पा रही थी अतः उन्होंने कहा, “मैं पूरी घटना आपको लिख कर भेज दूँगी। उसकी स्मृति से आज भी मैं रोमांचित हो उठती हूँ।”

एक सप्ताह के पश्चात श्रीमती सरिता कपूर का पत्र मेरे हाथ में था। मैंने शीघ्रता से पत्र निकाल कर पढ़ना प्रारम्भ कर दिया। यह घटना २० वर्ष पूर्व की थी। उस समय डॉक्टर कपूर उन्नाव में सी.एम.ओ. थे। मैं उनके पत्र को यथावत प्रस्तुत कर रही हूँ।...

“आज से लगभग २० वर्ष पूर्व उन्नाव में एक छोटे से गाँव में एक निर्धन परिवार में एक बच्ची का जन्म हुआ हूँ. बच्ची बहुत प्यारी और समझदार थी। माता-पिता ने उसका नाम कामना रखा। अभाव और गरीबी में कामना धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। कभी-कभी कामना की बातें उसके माता-पिता को आश्चर्य में डाल देतीं। जब वह तीन साल की थी तो अपनी माँ को देखकर प्यार से कहती, “तुम इतनी गन्दी साड़ियाँ क्यों पहनती हो? मेरी अल्मारी में ढेर सारी सुन्दर-सुन्दर साड़ियाँ रक्खी हैं। मां! आपके पास एक भी जेवर नहीं है, मेरा लॉकर जेवरों से भरा है। इस गन्दे घर को छोड़कर मेरे साथ कानपुर वाले घर में चलो।” शुरू में इन बातों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया, किन्तु उसका आग्रह धीरे-धीरे बढ़ता गया। वह अक्सर कहती, “माँ मेरे घर चलो, वहाँ आराम से रहेंगे। अच्छा खायेंगे और कुछ काम भी नहीं करना पड़ेगा। जब उसकी ज़िद्द बढ़ने लगी तो वे लोग सरपंच के पास पहुँचे कि बच्ची दिन पर दिन बेचैन होने लगी है, हमें क्या करना चाहिये? इसमें क्या राज़ है?” सरपंच कामना से मिलकर चकरा गये कि ३ वर्ष की जो बच्ची कभी कानपुर गई नहीं गई कानपुर का विवरण ठीक-ठीक कैसे बता रही है? मेरे पति उस समय उन्नाव में सी.एम.ओ. के पद पर कार्यरत थे. मैं एक समाज सेवी महिला हूँ और नारियों के हित के लिये लड़ती हूँ। सरपंच मुझसे आकर मिले और सारी समस्या बताई। यह सुनकर मेरी भी उत्सुकता जागी क्योंकि मैं इस तरह की बातों पर बिल्कुल विश्वास नहीं करती थी। मैं जब उस लड़की से मिली तो प्रथम दृष्टि में वह मुझे एक साधारण लड़की ही प्रतीत हुई। मैंने उसे प्यार से गोद में बिठा लिया और उसे ढेर सारी चॉकलेट दीं। मैंने उससे पूछा, “बेटी! तुम्हारा घर कहाँ है?” इतना सुनना था कि वह एक दम मुखरित हो उठी" प्रसन्नता से चीखते हुए बोल उठी, “आँटी! मेरा घर कानपुर में जनरलगंज में है" वहाँ मेरे मम्मी-पापा और मेरी बेटी माधुरी रहती है" मैं अवाक थी, लगभग तीन या साढ़े तीन वर्ष की बच्ची के बेटी,.. क्या अनहोनी बात कह रही है? सरपंच जी ने मुझे चुप रहने का इशारा करते हुए उस बच्ची से पूछा, “कामना बेटी! क्या तुम हम लोगों को अपने घर कानपुर ले चलोगी? अपने मम्मी, पापा और अपनी बेटी माधुरी से हमें मिलवाओगी?”

वह एकदम चहक कर बोली, “हाँ”। मैंने नोटिस किया कि उस बच्ची की आँखों मे एक सम्मोहन था।

"एक दिन हम सब लोग कानपुर के लिये रवाना हुए।” कानपुर सेन्ट्रल पर उतरकर हमने दो रिक्शे किये और रिक्शे वाले से कहा, “भैया, हमें जनरलगंज ले चलो।” मैंने कामना को अपने पास बैठा लिया था" हम उसके बताये रास्ते पर चल दिये। मैंने देखा कि कामना बहुत ख़ुश है और चिड़िया की तरह चहक रही है। उसकी आँखों की चमक से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी कोई मुराद पूरी होने जा रही है। मैंने कामना से पूछा, “बेटा तुम इतनी छोटी हो तो यहाँ पर तुम्हारे बेटी कैसे है?” वह झट से बोली, “आँटी! मेरी बेटी है, वह यहाँ मेरे मम्मी, पापा के साथ रहती है। वह बहुत प्यारी है। उसके ओंठों के पास एक तिल है। जब मैं गई थी तब वह बहुत छोटी थी।” कामना ने एक बड़े से घर के सामने रिक्शा रुकवाया। वह घर श्री राजकिशोर श्रीवास्तव का था। वह ख़ुशी से चीखते हुए बोली, “यही घर मेरा है।” मैं, सरपंच और उसके माता-पिता कामना को विस्मय से देख रहे थे कि उसने कैसे इस घर को पहचाना? इस पर भी हमें विश्वास नहीं था कि उसकी बातें सच होंगी। मैंने उत्सुकता से उस घर की घंटी बजाई तो लगभग दस वर्ष की एक प्यारी सी बच्ची ने दरवाज़ा खोला। मैंने जो दृश्य देखा उस पर कोई विश्वास नहीं कर सकता। मुझे स्वयं अपने नेत्रों पर विश्वास नहीं हो रहा था। हुआ यह कि जब उस लड़की ने दरवाज़ा खोला तो पहले तो कामना उसे ठगी सी एकटक देखती रही, फिर एक दम उस बच्ची से लिपट कर वह रोने लगी, “मेरी बेटी, मेरी माधुरी कैसी है तू?” क्षण मात्र में वह छोटी सी बच्ची ममतामयी माँ के रूप में परिवर्तित हो गई और हम भौंचक्के से देखते रह गये। मैंने देखा माधुरी के होठों पर एक छोटा सा तिल है।

इतने में कामना दौड़ती हुई घर में घुस गई और श्रीमती श्रीवास्तव से लिपट गई। हम सब उसके पीछे-पीछे घर के अन्दर घुसे। माधुरी चकित सी असमंजस की स्थिति में खड़ी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या है? एक छोटी सी बच्ची उसे अपनी बेटी बता रही है। मैंने उसे पुचकार कर कहा, “बेटी! यह भगवान की विचित्र लीला है। घबड़ाओ नहीं, तुम स्वयं कुछ देर में समझ जाओगी। यह बच्ची कहती है कि यह पिछले जन्म में तुम्हारी माँ थी और ज़िद्द करके यह हमें तुम्हारे पास लाई है। ये लोग इसके इस जन्म के माता-पिता हैं। यह बच्ची तुमको और अपने मम्मी-पापा को याद करके दुःखी होती थी इसीलिये हम लोग इसे लेकर तुम लोगों से मिलने चले आये हैं।” इसी बीच कामना चहक कर बोली, “मम्मी! मेरे पापा कहाँ हैं? क्या आज वह मुझे समौसा नहीं खिलायेंगे?” इतने में श्रीमती श्रीवास्तव को अन्दाज़ा लग गया कि यह छोटी बच्ची ज़रूर ही उनकी बेटी कल्पना ही है जिसे समौसे बहुत पसन्द थे। उनकी आँखें भर आईं बोलीं, “बेटी! तेरे पापा तेरे जाने के दो महीने के बाद ही चले गये।” वातावरण बड़ा ग़मग़ीन हो गया। मैंने दीवार पर लगे फ़ोटो को दिखाकर कामना से पूछा तो उसने सबको ठीक से पहचान लिया। सब कुछ मेरे सामने हो रहा था पर मेरे संशयी मन को कुछ और सबूत चाहिये थे। अचानक मैंने माधुरी से अन्दर से एल्बम मँगवाई। कामना ने एल्बम की सारी फ़ोटो देखकर एक-एक की सही पहचान की और सबका परिचय बताया। मैंने देखा कि अब कामना और माधुरी दोनों एक दूसरे को देखकर प्रसन्न हो रही थीं। थोड़ी देर में वे दोनों आँगन में जाकर एक दूसरे के साथ बातें करने में मग्न हो गईं। मैंने श्रीमती श्रीवास्तव से कामना के पिछले जन्म के बारे में जानकारी चाही। मैंने कहा कि कामना अपने पिछले जन्म की एवं कानपुर की बातें बताकर अपने इस जन्म के माता-पिता को बहुत परेशान करती है। हम लोग उसके पिछले जन्म की कहानी जानना चाहते हैं, क्या आप बताएँगी?

श्रीमती श्रीवास्तव ने जो कहानी बताई वह बड़ी मार्मिक है। श्रीवास्तव दम्पति की एक ही सन्तान थी- कल्पना। बड़ी सुन्दर व होनहार लड़की थी। उन्होंने उसे बहुत लाड़-प्यार से पाला था। वह पढ़ने-लिखने के साथ ही खेलने में भी बहुत तेज़ थी। उसकी बड़ी कलात्मक रुचि थी। कल्पना का विवाह लखनऊ निवासी डॉक्टर विजय भारती के साथ बहुत धूम-धाम के साथ हुआ था। विजय हर प्रकार से योग्य वर था... सुन्दर, सुशील, विद्वान। उन दोनों को देखकर सब कहते- “बड़ी प्यारी जोड़ी है, जैसे राम-सीता की जोड़ी”। चारों ओर आनन्द ही आनन्द था। धीरे-धीरे समय बीतता गया। कुछ समय के बाद भारती दम्पति को पुत्री रत्न प्राप्त हुआ। उसका नाम प्यार से माधुरी रक्खा गया। कहते हैं कि कभी-कभी अपनों की नज़र लग जाती है और कुछ ऐसा अघटित घट जाता है कि जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है। इसी बीच डॉक्टर विजय का ट्रांसफ़र हरदोई जिला चिकित्सालय में हो गया। रात का अन्धकार और बुरा समय चुपके-चुपके आता है। कब जीवन में दुःख के बादल छा जाते हैं पता ही नहीं चलता है। विनाश काले विपरीत बुद्धि... ऐसा ही डॉक्टर विजय के साथ भी हुआ। एक सीधा-साधा डॉक्टर कब एक महिला कर्मचारी के प्रेमपाश में फँस गया, पता ही नहीं चला। वह अपनी प्यारी पत्नी और ढाई वर्ष की नन्ही, प्यारी सी बच्ची- सभी को भुला बैठा। बात कब तक छुपी रहती? कल्पना को भी विजय के प्रेम-प्रंसग के विषय में पता चल गया। पति-पत्नी में इस बात पर झगड़ा होने लगा। रोज़-रोज़ के झगड़ों से तंग आकर डॉक्टर विजय ने एक षड़यन्त्र रच डाला। एक दिन जब कल्पना अखबार पढ़ रही थी तो विजय ने अपने एक मित्र के साथ मिलकर उसका गला दबा कर उसकी हत्या कर दी। उन लोगों ने कल्पना की लाश को एक सन्दूक में बन्द करके गंगा नदी में फेंक दिया. संयोग से गश्त लगाने वाले सिपाहियों ने उन लोगों को सन्दूक फेंकते हुए देख लिया। उस सन्दूक में लाश देखकर सिपाहियों ने थाने में रिपोर्ट लिखाई और डॉक्टर विजय भारती को गिरफ़्तार कर लिया गया। उनपर मुकदमा चला और उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा हो गई। नन्ही माधुरी कल्पना के माता-पिता के पास पलने लगी।”

कामना के पूर्व जन्म की लोमहर्षक कहानी सुनकर हम सबके रोंगटे खड़े हो गये। हमारी दृष्टि आँगन में बैठी दोनों बच्चियों पर गई, कामना ख़ुशी से अपनी पिछली बातें याद करके चहक रही थी और माधुरी विस्मित होकर सुन रही थी। मैंने देखा कि उस छोटी सी बच्ची के मुख पर बातें करते समय एक वयस्क महिला जैसे भाव थे। हम सब आश्चर्य से समस्त घटनाओं को चल-चित्र की भाँति देख रहे थे। श्रीमती श्रीवास्तव ने हम सबसे भोजन करने का आग्रह किया। उन्होंने बड़े प्रेम से कामना को गोद में बिठाकर भोजन कराया। समय बहुत हो गया था और शाम होने वाली थी अतः हमने उन्नाव वापस लौटने की इच्छा ज़ाहिर की। मैंने देखा कि चलने की बात सुनकर कामना और माधुरी दोनों ही विचलित हो उठीं और श्रीमती श्रीवास्तव रोने लगीं। उन्होंने कहा कि कृपया आप कामना और उसके माता-पिता को मेरे पास ही रहने दें। कल मैं स्वयं उन लोगों को घर पहुँचा दूँगी। मैं और सरपंच जी निरुत्तर रह गये और उन लोगों को वहाँ पर छोड़ कर वापस चल दिये।

मैं मन ही मन समस्त घटनाक्रम पर विचार कर रही थी। अपने नेत्रों से देखी इस पुनर्जन्म की अद्भुत घटना की साक्षी बनकर मैं आश्चर्य चकित थी और भगवान की लीला देखकर विस्मित थी. आज भी इस घटना के स्मरण करने पर मैं रोमांचित हो उठती हूँ।”

श्रीमती सरिता कपूर के पत्र को पढ़कर मैंने यथावत लेखनीबद्ध करने का प्रयास किया है।

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