कालचक्र
गीतिका सक्सेनाये किस तरह का ज़माना आया है,
हर तरफ़ छाया मौत का साया है,
चार कंधे भी नसीब ना हों दोस्तों,
वक़्त ये कैसे मुक़ाम पर लाया है।
ना जाति ना मज़हब पूछ के आया है,
पूरे विश्व पे घना कोहरा सा छाया है,
घर बनाए हैं बहुत मेहनत से दोस्तो,
अब उनमें रहने का समय आया है।
लगता है जैसे हमेशा के लिए आया है,
साथ दुआएँ मनाने का दौर लाया है,
मिलकर निभाए हैं बहुत रिश्ते दोस्तो,
दूरी से साथ निभाने का मौक़ा आया है।
ख़ुदा नहीं इंसान के बनाने पर आया है,
हमने परिमंडल का मज़ाक बहुत उड़ाया है,
मानव बंद हुआ, तो प्रकृति स्वछंद हैं दोस्तों,
इसीलिए ईश्वर ने हमें ऐसा दिन दिखाया है।