जूते
दीपक पाटीदारअब वे इस क़ाबिल नहीं रह गए थे कि
और चल सकें,
हो चुकी थी मरम्मत उनकी
जितनी हो सकती थी
बहुत सफ़र तय कर चुके थे वे जूते
मेरे साथ और उनके साथ मैं
मगर अब वे पड़े हैं
घर के एक व्यस्त कोने में
बीते हुए सफ़र की याद बनकर।
अब वे इस क़ाबिल नहीं रह गए थे कि
और चल सकें,
हो चुकी थी मरम्मत उनकी
जितनी हो सकती थी
बहुत सफ़र तय कर चुके थे वे जूते
मेरे साथ और उनके साथ मैं
मगर अब वे पड़े हैं
घर के एक व्यस्त कोने में
बीते हुए सफ़र की याद बनकर।