जंगल बुक - 1 कोई हमारी भी सुनो

15-09-2019

जंगल बुक - 1 कोई हमारी भी सुनो

डॉ. सुशील कुमार शर्मा

(पात्र: तोता, हाथी, ज़ेब्रा, बगुला, शेर, नेता, पंत प्रधान)

तोता

क्यों ज़ेब्रा जंगल के क्या हाल हैं?

ज़ेब्रा

क्यों तुम्हें नहीं मालूम क्या, कहीं बाहर गए थे क्या?

तोता

नहीं यार आदमी ने पकड़ लिया था, बड़ी मुश्किल से छूट कर आया हूँ।

ज़ेब्रा

वहीं रहते कम से कम खाने को तो मिलता। जंगल के हालात बहुत ख़राब हैं।

हाथी

सही है दोस्त हम लोगों की तो भूखे मरने की नौबत आ गई है।

बगुला

मेरी झील भी सूख रही है, मछलियाँ नहीं हैं क्या करूँ।

शेर

हमारी तो और बुरी हालत है दोस्त तुम सब लोग हमें जंगल का राजा कहते हो लेकिन हम तो अब भिखारी भी नहीं बचे, सब जानवर मर रहे हैं। अब तो शेरों को एक दूसरे को मार कर खाने की नौबत आ गई; समझ में नहीं आ रहा है क्या करें?

तोता

हमारी प्रजाति का तो अस्तित्व ही ख़त्म हो रहा है, मैं बूढ़ा हो रहा हूँ लेकिन मेरी शादी अभी तक नहीं हो रही है (तोते ने मुस्कुराते हुए कहा )

हाथी

शादी तो करवा देंगें लेकिन उसे खिलाओगे क्या? सारी फ़सलों में कीट-नाशक डला है कल ही उस चने के खेत में सारे पक्षी मरे पड़े थे। इंसान को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है कि वो कर क्या रहा है!

तोता

आजकल तो बच्चे हमें ज़ू में भी देखने नहीं आते, सारे चिड़ियाघर और ज़ू बंद होने की कगार पर हैं, सभी बच्चे और बूढ़े मोबाइल में व्यस्त रहते हैं।

शेर

दोस्तो आप लोग बताओ हम अपनी प्रजातियों को कैसे सुरक्षित रखें? क्योंकि इंसान पर भरोसा बहुत मुश्किल है।

हाथी

चलो भाइयो हम सभी इंसानी नेताओं से मिलते हैं; हो सकता है कोई राह निकले।

(सभी बारी-बारी से नेताओं के पास जाते हैं और अपने अस्तित्व को बचाने की बात करते हैं।)

 प्रथम नेता 

देखो भैया आपकी बात जायज़ है लेकिन मेरे हाथ में कुछ नहीं है। जिनकी सरकार है वो मुझे सीबीआई से डरा रहे हैं, अल्प संख्यकों पर अत्याचार हो रहा है, देश की अर्थ व्यवस्था मंदी की ओर जा रही है, मैं ख़ुद को बचा नहीं पा रहा हूँ आपको क्या बचाऊँगा!

(बेचारे निराश जानवर दूसरे नेता के पास जाते हैं।)

 

द्वितीय नेता

देखो... आप में से जो दलित हैं सिर्फ़ वही अपनी बात रखें, क्योंकि हम सिर्फ़ दलितों के हितेषी हैं; जो उच्च वर्गीय जानवर हैं वो हमारे पास न आएँ।

तृतीय नेता

सौगंध राम की कहते हैं हम मंदिर वहीं बनायेंगे; आप में से जो जय श्रीराम बोलेगा वही जंगल के चुनाव में हमारा अधिकृत प्रत्याशी होगा। बोलो जय श्री राम!

चतुर्थ नेता

इस देश की अख्लियत और इज़्ज़त हमारी क़ौम से है। हम सिर्फ़ अपनी क़ौम को ही आगे बढ़ायेंगे जो हमारे दीन को मानेगा बस वही हमारी नुमाइंदगी करेगा।

(बेचारे परेशान जानवर हक्के-बक्के से एक दूसरे का मुँह ताकते पंत प्रधान के पास जाते हैं)

शेर

देखिये पंत प्रधान जी! हमने आपकी बहुत प्रशंसा सुनी है कि आप सबको साथ लेकर चलने वालों में हैं। आप हम जंगल के जानवरों की समस्याओं को सुलझाइये। हमें आप से बहुत आशा है।

पंत प्रधान

बहिनो और भाइयो आज रात .........

तोता

बस बस महोदय हम समझ गए आपको आगे कहने की ज़रूरत नहीं हैं चलो सब भागो।

 

उस दिन से जंगल के सभी जानवर अपनी स्वयं की ज़िम्मेवारी उठाकर, जैसा भी ईश्वर ने जीवन दिया है, जी रहें हैं। उन्हें इंसानों पर अब विश्वास नहीं रहा!

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