जुदाई (रंजना भाटिया)

17-06-2007

जुदाई (रंजना भाटिया)

रंजना भाटिया

तेरी जुदाई का यह कैसा उपहार है
मेरी इन आँखो को बस तेरा ही इंतज़ार है

 

ढालने लगे हैं अब तो साँसों के साए
मेरे साजन तुम कह कर भी ना आए

 

मेरी यह पीड़ा अब कौन समझे
यह मेरे दर्द अब कौन तुम्हें समझाए

 

तरस रहा मेरा दिल तेरे दीदार को
अब इन प्यासे नयनों की प्यास कौन बुझाए

 

गहरे दर्द में हैं दिन रैना डूबे
अधर मेरे तेरा नाम ले ले के सूखे

 

आस की किरण भी अब तो कोई ना दिखाए
रुला जाते हैं आज भी मुझे तेरी यादों के साए

 

तेरी जुदाई का यह कैसा उपहार है
मेरी इन आँखो को बस तेरा ही इंतज़ार है

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें