जीवन में घटनाओं से सीख

15-07-2021

जीवन में घटनाओं से सीख

नीरजा द्विवेदी (अंक: 185, जुलाई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

जीवन में कभी-कभी ऐसी घटनायें घटित होती हैं जो हमें कुछ न कुछ शिक्षा दे जाती हैं। आज मैं ऐसी ही कुछ घटनाओं का वर्णन कर रही हूँ जिसने मुझे यह शिक्षा दी कि जब किसी महत्त्वपूर्ण पद के कारण लोग आपको महत्त्व देने लगें या आपकी सहायता के लिये तत्पर हो जायें या अकारण प्रशंसा करना प्रारम्भ कर दें तो उनकी भावना को सत्य समझने की भूल नहीं करना चाहिये।

बात उन दिनों की है जब मेरे पति की नियुक्ति बरेली में उप महानिरीक्षक (डी.आई.जी) के पद पर हुई थी। मेरी मम्मी बरेली रेंज के जनपद बदायूँ के दातागंज नामक क़स्बे में निवास करती थीं। एक दिन मेरे पति ने दफ़्तर से आने के बाद बताया, "एक दरोगा जी मुझसे मिलने आये थे। वह कह रहे थे कि उनको तुम्हारे पापा ने भर्ती किया था। वह बता रहे थे कि उन्होंने तुम्हें बचपन में गोद में खिलाया है।" मुझे यह सुनकर आश्चर्य हुआ क्योंकि मुझे नहीं याद था कि कोई दरोगा जी घर के अंदर आते थे। मम्मी से मिलने पर मैंने मम्मी से उक्त सज्जन के विषय में पूछा। मम्मी ने बताया, "वह दरोगा जी बदायूँ के रहने वाले हैं। तुम्हारे पापा के पास अपनी सिफ़ारिश कराने आते रहते थे। बहुत मतलबी आदमी हैं। तुम्हारे पापा की मृत्यु के बाद उन्होंने लौटकर कभी मेरा हाल नहीं पूछा कि मैं ज़िंदा हूँ या मर गई। ऐसे लोगों से सम्हल कर रहना।" आगे मम्मी ने यह भी बताया, "जब से महेश बरेली आ गये हैं सब लोग चाहे पुलिस वाले हों या पब्लिक के, मेरी ख़ुशामद में लगे रहते हैं कि ‘आपको बरेली चलना हो तो बताइये, मैं कार ले आता हूँ।’ मैं जानती हूँ कि यह कुछ दिन की बहार है अतः उन्हें मना कर देती हूँ। जब मुझे आना होता है तो अपनी कार से ही आती हूँ।" 

एक घटना सन 2000 की है जब मेरे पति की उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डी.जी.पी.) के पद पर नियुक्ति हुई थी। मेरी सास श्रीमती पान कुँवर दुबे जिन्हें हम सब चाची कहते थे,  औरैया जनपद के मानीकोठी ग्राम में निवास करती थीं। मेरे पति के डी.जी.पी. के पद का चार्ज लेने के अगले दिन हम लोग अचानक चाची को डी.जी.पी. निवास में देखकर आह्लादित हो उठे। बिना सूचना उनको अपने पास देखकर हमें आश्चर्य भी कम नहीं हुआ। माँ अपने पुत्र को पुलिस के सर्वोच्च पद पर देख कर गर्वान्वित थीं, भावविभोर थीं। बाद में चाची ने बताया कि चौकी के एक दरोगा जी चाची के पास आये और बोले, "माता जी! चलिये आपको साहब के पास मिला लायें। आप जब साहब के पास चलना चाहें तो मुझे बता दीजियेगा, मैं आपको ले चलूँगा।" चाची जब हमारे पास से जाने लगीं तो मैंने चाची से कहा, "चाची! आप अपना ध्यान रखियेगा। इस समय लोग आपकी चापलूसी करेंगे और इनके इस पद से हटते ही फिर आपको भूल जायेंगे। ऐसे में आपका तिरस्कार होगा यह हमें अच्छा नहीं लगेगा।" मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि चाची ने हमेशा अपनी गरिमा का ध्यान रक्खा। द्विवेदी जी की सेवानिवृत्ति के बाद भी चाची की या मेरे पति की गरिमा में कोई क्षति नहीं हुई।

आज भी श्रीमती जैक्सन (एक आई.पी.एस. अधिकारी श्री जैकब जैक्सन साहब की पत्नी, मुझे  उनका नाम नहीं याद है) की मुखाकृति मेरे नेत्रों के समक्ष साकार हो उठी है। लगभग 5 फुट 4 इंच लम्बी, साँवले रंग की, सुडौल शरीर की श्रीमती जैक्सन की भोली-भाली मुखाकृति पर अबोध बालकों जैसा हास्य उनकी विशेषता थी। उनके पति श्री जैकब जैक्सन साहब बहुत ईमानदार व्यक्ति थे। ‘सिम्पिल लिविंग हाई थिंकिंग’ के आदर्शों में विश्वास रखने वाले दोनों पति-पत्नी का रहन-सहन एकदम सामान्य था। मुझे उस समय की एक घटना का स्मरण हो रहा है जिसने मुझे अत्यंत उद्वेलित किया था। जैकब जैक्सन साहब की हाल में पदोन्नति हुई थी। पुलिस वीक के समय परेड के दिन कई अधिकारियों की पत्नियाँ पीछे की पंक्ति की कुर्सियों पर बैठी थीं। मैं भी बीच में बैठी थी। अचानक श्रीमती जैक्सन आगे से उठकर पीछे सबसे मिलने के लिये आईं। दो महिलाओं ने उठकर, आगे बढ़कर श्रीमती जैक्सन का स्वागत किया, “मैम! आप तो आज बहुत स्मार्ट लग रही हैं। आपकी साड़ी बहुत सुंदर है।" दूसरी ने उनके नये सिलवाये हुए ब्लाउज़ की भूरि-भूरि प्रशंसा की। श्रीमती जैक्सन का मुख प्रसन्नता पूर्ण हास्य से आलोकित हो उठा—मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे किसी बच्चे को पहली बार शाबाशी मिले तो वह ख़ुशी से खिल उठता है। मैं अभी श्रीमती जैक्सन की भोली छवि देख ही रही थी कि यह सुनकर विस्मित हो उठी कि वे महिलायें जिन्हें मैं उनका बहुत अच्छा मित्र समझती थी, तुरंत ही कुछ और कह रही हैं। श्रीमती जैक्सन दस बारह क़दम दूर भी नहीं जा पाई थीं कि प्रशंसा करने वाली एक महिला मुँह बिचका कर बोलीं, "इनको देखो, प्रमोशन क्या हुआ इनके पर लग गये।" दूसरी बोलीं, "लेटेस्ट ब्लाउज़ सिलवा कर बड़ा इतरा रही हैं।"

एक सज्जन महिला के प्रति उनकी सहेलियों के इस निम्न कोटि के व्यवहार से मुझे बहुत मानसिक कष्ट हुआ तथा यह शिक्षा भी मिली कि सबसे सम्यक व्यवहार रखना चाहिये और मित्रता करते समय बहुत सावधानी रखनी चाहिये।

इसी संदर्भ में मुझे कुछ अन्य मनोरंजक, शिक्षाप्रद संदर्भ याद आ रहे हैं। प्रत्येक बार डी.जी.पी. पद के लिये जब इनका नाम प्रस्तावित होता था और लोग समझते थे कि यही इस पद के असली दावेदार हैं तो इनके साथ मेरी भी चापलूसी का दौर शुरू हो जाता था। जब कोई अन्य पदासीन हो जाता तो उन लोगों की श्रद्धा बालू के ढेर के समान धराशायी हो जाती थी। मुझे आश्चर्य होता है कि लोग इतनी बेशर्मी से चापलूसी की हद कैसे पार कर लेते हैं? यह तब की बात है जब मेरे पति के डी.जी.पी. पद प्राप्त करने का अवसर था। एक बार कार पर बैठते समय मेरी एक चप्पल ज़मीन पर गिर गई। मैं हक्की-बक्की रह गई जब मेरे मुड़ने से पहले पूरी वर्दी पहने खड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने वर्दी की गरिमा का ध्यान रक्खे बिना मेरी चप्पल उठाकर कार में रख दी। एक बार एक आई.जी. रैंक के अधिकारी ने लपक कर मेरे हाथ से मेरी जूठी प्लेट उठा कर नीचे रख दी। जब इस प्रकार कुछ अप्रत्याशित घटित होता था तो ये घटनायें आँख खोलने का कार्य करती थीं। 

मेरे पति जिस बात को सही समझते हैं तो उस बात से डिगते नहीं हैं। अपने कार्यकाल में यदि किसी की ग़लत काम की सिफ़ारिश होती थी तो चाहे कितना बड़ा दबाव पड़े या स्वयं नुक़्सान उठाना पड़ जाये वह काम नहीं करते थे। सब नेता उनकी हठधर्मिता को जानते थे अतः जब डी.जी.पी. के पद पर नियुक्ति का नम्बर आता तो सबसे सीनियर होने और श्रेष्ठ चरित्रपंजिका के बावजूद तीन बार उनसे जूनियर व्यक्तियों को डी.जी.पी. बना दिया गया। उस अवधि में एक मनोरंजक घटना घटी। एक बार हम लोग हज़रतगंज में एक पिक्चर हाल में पिक्चर देखने जा रहे थे। मेरे पति हमेशा टिकिट ख़रीद कर ही पिक्चर देखने जाते थे अतः किसी पुलिस वाले को सूचना भी नहीं की थी। हमारे पिक्चर हाल पर पहुँचते ही वहाँ इंस्पेक्टर कोतवाली सहित कई दरोगा और सिपाहियों को मेरे पति ने बावर्दी सैल्यूट ठोंकते देखा तो चकरा गये। हम लोगों ने समझा कि किसी काम से ये लोग यहाँ उपस्थित हैं अतः सामने देख कर मिलने आ गये हैं। इंटरवल में भी मुस्कराते हुए एक साहब ख़ातिरदारी करने की फिक़्र में आये। जब पिक्चर समाप्त हुई तो पुलिसिया हंगामा ख़त्म हो गया था।

मेरे पति डी.जी.पी. के पद के लिये नेताओं के पास दौड़-धूप नहीं करते थे पर उन्हें अपनी कार्यकुशलता और क्षमता पर विश्वास था। उस दिन प्रेस वालों ने मेरे पति को बताया था कि आपका नाम डी.जी.पी. पद के लिये प्रस्तावित हुआ है। पिक्चर हाल पर  शुरू में पुलिस की गहमागहमी और फिर अंत में पूर्ण शांति ने मेरे मन में संशय डाल दिया कि लगता है पहले की भाँति इस बार भी उनका नाम काट दिया गया है। आवास पर पहुँचकर दूरदर्शन ने इस समाचार की पुष्टि कर दी। 

विनम्रता चापलूसी में परिवर्तित हो जाती है तो प्रसन्नता न देकर कुछ शिक्षा दे जाती है। मैंने अपने अनुभवों से जाना है कि सम्यक व्यवहार वाले व्यक्ति जो सदा आपके हितेच्छु होते हैं वे ऐसे अवसरों पर अलग-थलग रहते हैं और  जो स्वार्थी होते हैं वे अधिक निकट आने का प्रयत्न करते हैं। वे अवसरवादी हैं, उनसे सम्हल कर रहना चाहिये। इस प्रकार आप अपने सच्चे हितैषी खोज सकते हैं।

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