जीवन की बाधाएँ
सरोजिनी पाण्डेययह जीवन है जल की धारा
बाधाएँ शिलाखंड सी हैं,
जब आ गिरती हैं धारा में
प्रवाह को बाधित करती हैं,
मन की दृढ़ता, पौरुष-बल को
यदि तुम कुठार सम कर लोगे,
उस शिलाखंड को चूर-चूर
छोटे कंकर-सा कर दोगे,
जब शिलाखंड खंडित होगा
धारा अबाध हो जाएगी,
अविरल बहती जीवनधारा
कंकर को स्वतः बहायगी,
कंकर, धारा में बहने से
शिवलिंग स्वयं बन जाएँगे
जीवन की बहती धारा को
कुछ शोभित ही कर जाएँगे,
फिर कालचक्र की गति से सब
सिकता के कण बन जाएँगे,
यदि कूलों तक वे पहुँच गए
बन रजत उसे चमका आएँगे,
सुंदर कंकर, भासित सिकता
होंगे प्रमाण संघर्षों के,
पाकर इनसे साहस औ'बल
आने वाले प्रेरित होंगे,
तो, शिलाखंड यदि आन पड़ें
अवरुद्ध न होने दो धारा,
करने को उसको चूर-चूर
झोंको अपना पौरुष सारा।
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