जीवन इधर भी है

01-12-2019

जीवन इधर भी है

राहुलदेव गौतम (अंक: 145, दिसंबर प्रथम, 2019 में प्रकाशित)

काश! मैं तुम्हें रोक पाता
उस घड़ी जब तुमने,
मेरे दुःखों को
एक नाम देकर पुकारा था।


काश! मैं तुम्हें ढूँढ़ पाता
उस घड़ी जब तुम,
मेरे सवालों का जवाब
कुछ आँसुओं में देकर
कहीं गुम हो गये थे।


काश! मैं तुम्हें नींद में छुपा लेता,
उस घड़ी जब तुमने,
मेरी आँखों में आँखें डालकर
मेरे बेचैनी को शान्त किया था।


काश! मैं तुम्हें बाँध पाता
उस घड़ी अपने असीमित
सपनों के बंधन से,
जब तुमने हल्की सी 
साँसों में कहा था,
मुझे तुमसे?

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में