जन्म दिवस पर दादाजी ने,
तोहफ़ा दिया किताब का।
यह किताब थी बड़े मज़े की,
कविता और कहानी की।
सिर पर कद्दू लिए छपी थी,
फोटो बूढ़ी नानी की।
छपी हुई थी माथा पच्ची,
गणित, गुणा और भाग का।
कार्टून थे बड़े मज़े के,
हमें हँसाया जी भरके।
लोट पोट हो गए हम सभी,
पकड़ पेट,कूदे उचके।
मेंढक बैठा टाई पहनकर,
सूट बूट टिप टॉप था।
आगे वाले एक पेज पर,
चित्र छपा था बिल्ली का।
कई रास्तों के भीतर से था,
एक रास्ता दिल्ली का।
कैसे बिल्ली दिल्ली पहुँचे,
माँगा गया था जबाब था।
बाल पत्रिकाएँ पढ़ने से,
ज्ञान हमारा बढ़ता है।
ख़ुशियों का सैलाब नदी सा,
मन में घुमड़, उमड़ता है।
दादा जी के माना हमने,
लोहा तेज़ दिमाग का।