जलती हुई लौ

01-04-2021

जलती हुई लौ

प्रवीण कुमार शर्मा  (अंक: 178, अप्रैल प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

जल से शुद्ध आग
आग से शुद्ध आत्मा
और आत्मा ही परमात्मा।
 
कितना भी बड़े से बड़ा दाग़
कपड़े में हो या शरीर पर
यहाँ तक कि मन पर
सब धो डालता है जल।
 
जीवन के हर पहलू को
स्वच्छ कर,
नित्य समय अधम शरीर
से प्राण निकलने पर
सुपुर्द ए ख़ाक
कर डालती है आग।
 
आत्मा उस जलती हुई लौ की तरह
ऊपर की ओर झाँकती रहती है
परमात्मा की तरफ़।
 
फिर अंततः आत्मा रूपी लौ
परमात्मा रूपी लौ में होम हो
पंचतत्व में समा जाती है
हमेशा हमेशा के लिए।

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