जैसा सोचा था जीवन आसान नहीं
सजीवन मयंकजैसा सोचा था जीवन आसान नहीं।
साथ किसी के जाता कुछ सामान नहीं॥
सभी दूसरों के कंधों पर बढ़ते हैं।
तीर व्यर्थ है जिसके साथ कमान नहीं॥
मुर्दे को दो गज ज़मीन मिल जाती है।
जो ज़िंदा है उनके लिये मकान नहीं॥
चारों ओर जंग जारी भीतर भीतर।
अभी कहीं से हुआ कोई ऐलान नहीं॥
है ये अपना देश इसे कैसे भूलें।
पर पहिले सा अपना हिन्दुस्तान नहीं॥
पिंजरे के पंछी के पर है उडने को।
पर उसकी क़िस्मत में लिखी उड़ान नहीं॥
हमें भरोसा था जिस पर ख़ुद से ज्यादा।
उसका कहना है मुझसे पहिचान नहीं॥
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