जग में है संन्यास वहीं

01-11-2019

जग में है संन्यास वहीं

अजय अमिताभ 'सुमन'

जग में डग का डगमग होना, जग से है अवकाश नहीं, 
जग जाता डग जिसका जग में, जग में है संन्यास वहीं ।


है आज अँधेरा घटाटोप, सच है पर सूरज आएगा,
बादल श्यामल जो छाया है, एक दिन पानी बरसायेगा।
तिमिर घनेरा छाया तो क्या, है विस्मित प्रकाश नहीं,
जग में डग का डगमग होना जग से है अवकाश नहीं।


कभी दीप जलाते हाथों में, जलते छाले पड़ जाते हैं,
कभी मरुभूमि में आँखों से, भूखे प्यासे छले जाते हैं।
पर कई बार छलते जाने से, मिट जाता विश्वास कहीं?
जग में डग का डगमग होना, जग से है अवकाश नहीं।


सागर में जो नाव चलाये, लहरों से भिड़ना तय उसका,
जो धावक बनने को इच्छुक ,राहों पे गिरना तय उसका।
एक बार गिर कर उठ जाना पर होता है प्रयास नहीं,
जग में डग का डगमग होना जग से है अवकाश नहीं।


साँसों का क्या आना जाना एक दिन रुक ही जाता है,
पर जो अच्छा कर जाते हो, वो जग में रह जाता है।
इस देह का मिटना केवल, किंचित है विनाश नहीं।
जग में डग का डगमग होना, जग से है अवकाश नहीं।


जग में डग का डगमग होना, जग से है अवकाश नहीं, 
जग जाता डग जिसका जग में, जग में है संन्यास वहीं ।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कहानी
सांस्कृतिक कथा
सामाजिक आलेख
सांस्कृतिक आलेख
हास्य-व्यंग्य कविता
नज़्म
किशोर साहित्य कहानी
कथा साहित्य
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में