जाइये-आइये

दिविक रमेश

हाँ हमीं ने बुलाया था न आपको
आपके मुद्दों पर विचार के लिए
पर अब हम नहीं करेंगे न
नहीं करेंगे माने नहीं करेंगे, जाइये।

ऐ न्यायप्रिय जी
सब हमारी मर्जी पर ही चलता है न
कारण-फारण जानकर क्या कीजिएगा
क्या उखाड़ लेंगे आप हमारा
कह दिया न हमारी मर्जी! जाइये।

अरे हे पी.ए. साहिब, तनिक सुनो तो
समझाओ इन्हें। आहाहाहाहाहाहा......
कल प्रैस में मर्जी
और अगले दिन छपवा दीजिएगा न मजबूरी।
आहाहाहाहाहाहा......

अरे! अरे! आप!
आप यहाँ
बुला लिया होता न दास को।

ऐ पी.ए. साहब!

’माफ कीजिए
यह ससुर लांगड़ भी
तैयार रहती है खुलने को
खोले रहूँ
या बाँध लूँ।
हमारी चरण वन्दना तो लीजिए न!
आप हैं तो हम हैं न! आइये।

देखिए न
कितना कुछ तो कह रही हैं आपकी आँखें
हमारे पक्ष में। आइये।

ऐ पी.ए. साहिब
भेजिए न। तनिक जल्दी कीजिए भाई।’

आइये!

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
स्मृति लेख
पुस्तक समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
सांस्कृतिक कथा
हास्य-व्यंग्य कविता
बाल साहित्य कहानी
बात-चीत
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में