इतवारी रिश्ते

15-03-2021

इतवारी रिश्ते

राजेश ’ललित’ (अंक: 177, मार्च द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

रिश्ते कितने कठिन
बनाने भी
निभाने भी


पहले ख़ाली 
इतवार ढूँढ़ो 
फिर बहाना 
जाना; नहीं जाना


रिश्ता दूर का
पास का
बुलाना; नहीं बुलाना


अमीर या ग़रीब 
घर से
दिल से
दूर या क़रीब 


चलें या न चलें
चलो घर पर
मनाते हैं रिश्ते
संडे है न
रिश्ते फिर कभी

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
सांस्कृतिक आलेख
कविता - क्षणिका
स्मृति लेख
बाल साहित्य कविता
सामाजिक आलेख
कविता - हाइकु
लघुकथा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में