जो आया मेरे दर पर
बस कुछ न कुछ
माँगने आया।
पर कभी माँगा न मुझे
न माँगा मेरा
प्रेम तत्व मुझसे।
बस हताश रहा
मुक्ति के लिए,
और परेशान रहा
अपनी इच्छाओं के लिए।
बस ढूँढ़ता रहा
लोगों में कमियाँ
न तलाशा कि उनकी
आत्मा में मेरी अभिव्यक्ति।
अपनी घर की
चारदीवारी की तरह
मुझे भी बाँटता रहा,
कभी मंदिर, कभी मस्जिद
कभी गिरजाघर के रूप में।