इश्तिराक!

01-10-2020

इश्तिराक!

आरती पाण्डेय (अंक: 166, अक्टूबर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

इश्तिराक जानते हो क्या है?
 
इश्तिराक= भागीदारी, साझा, समानता
 
कोशिश है उन स्वप्नों की 
समांतरता की
अधिकार ही नहीं, जज़्बातों  में भी
अरमानों का ही नहीं,
आँसुओं की लकीरों का
क्यों  कहते हो अबला उसे
जब तुम्हारा बल उसकी ही नज़र से है
 
इश्तिराक होना चाहिए...
 
उन फूलों में भी, एक जो डाल पर सजे हैं
और वो जो डाल से छूट गये....
उन गेहूँ की बालियों में भी, जो ठूँठ में दबी रह गईं
और जो थ्रेशर की गलियों में झूम गईं;
 
उन धवल रंगों में भी जो सतरंगी हो कर भी
जीवन को बदरंग करते हैं 
हाशिए पर खड़ी उन रुदालियों के आँसुओं में भी 
जिन्हें जनाज़े से कोई सरोकार नहीं;
 
इश्तिराक या हुक़ूक़...
 
हुक़ूक़= अधिकार (बहुवचन)
 

फ़र्क़ है इनकी अस्मिता में सूत के रेशों जितना
अज़ाब की ख़लिश से उभर..
अन्जाम की इष्टि में 
उम्मीद की गिरह को आहिस्ता - आहिस्ता
टटोल,
अबतर हुए जमीर में हौसलों का जिया भर
ना इश्तिराक, ना हुक़ूक़  के इश्फाक से
 
अज़ाब= पीड़ा, दुःख; ख़लिश= चुभन, कसक, रंजिश, बैर
अबतर=अस्तव्यस्त, तितर-बितर, दुर्दशा- ग्रस्त, बदहाल।
ज़मीर=आत्मा, अन्तःकरण

 
बस एक मासूम कोशिश है... 
स्वाभिमान की धार से 
पानी में लकीर खींचने की! 

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