इक कहानी तुम्हें मैं..
संजय कुमार गिरिइक कहानी तुम्हें मैं सुनाता रहूँ।
प्यार की हर निशानी दिखाता रहूँ।
मुस्कुराती रहो गीत बनके मेरे,
मैं तुम्हें यूँ सदा गुनगुनाता रहूँ।
राह में तुम मिलो फूल बनकर कभी,
मैं तुम्हें यूँ गले से लगाता रहूँ।
संग तेरे बीत जाए घड़ी प्यार की,
मैं तुम्हें दिल में यूँ ही बसाता रहूँ।
रोक लो अपने बढ़ते हुये ये क़दम,
प्यार से मैं तुम्हें अब सजाता रहूँ।
उम्र बीत न जाए "संजय" तुम्हारी,
हौसले दिलों के मैं बढाता रहूँ।