हमऊँ देऊ
नीरजा द्विवेदीएक लकड़हारा था जो रोज जंगल में लकड़ी काटने जाता था। एक दिन उसका बच्चा ज़िद करने लगा कि मुझे भी साथ ले चलो। पापा ने मना किया कि तुम्हें भूख लगेगी, प्यास लगेगी, और वहाँ कुछ नहीं मिलेगा। पर ज़िद करने पर साथ ले गया। दोपहर में भूख प्यास लगने पर बच्चा रोने लगा। लकड़हारे ने पेड़ पर चढ़कर देखा तो दूर एक झोपड़ी मे धुआँ उठ रहा था। वहाँ जाकर आवाज दी “कोई है... केई है” पर अंदर कोई नहीं था। घर के अंदर गया तो देखा कि चूल्हे पर दूध उबल रहा था व चावल, चीनी पास में रखी थी। लकड़हारे ने दूध में चावल डालकर खीर बना ली। थाली में परसी, तब तक बाहर से किसी के आने की आवाज सुनाई दी। दोनों जल्दी से अनाज के कुठिले में छिप गये। वहाँ एक शेर आया। शेर ने सोचा कि खीर किसने बना दी। उसने धर मे ढूँढा तो कोई नहीं दिखाई दिया। फिर शेर खीर खाने लगा। बच्चा यह देखकर बोला कि पापा खीर हमने बनाई और यह सब खाये जा रहा है। लकड़हारा बोला, “चुप रह, नहीं तो शेर हमको खा जायेगा।” बच्चा नहीं माना और बोला, “हमऊँ देऊ, हमऊँ देउ।” शेर चौंका कि यह आवाज कहाँ से आई, पर कोई दिखाई नहीं दिया तो फिर खीर खाने लगा। यह देखकर बच्चा फिर बोला, “हमऊँ देऊ, हमऊ देऊ।” इसी तरह एक बार फिर हुआ। शेर किसी को न देखकर डर गया और कूद कर भाग गया। भागते भागते रास्ते में एक बंदर मिला। बंदर बोला, “शेर मामा, शेर मामा! तुम तो जंगल के राजा हो, तुम किससे डरकर भाग रहे हो?” शेर बोला, “क्या करें मेरे घर में हमऊ देऊ घुस आया है।” बंदर बोला “उसमें क्या बात है उसको तो मैं निकाल दूँगा। पर पहले हम तुम दुम बाँध लें।” घर पहुँचे तो बंदर ने दुम पर कपड़ा लपेटा और बोला “निकल हमऊ देऊ, निकल हमऊ देऊ, निकल हमऊ देऊ।” शेर ने कहा, “कुठिले से भी हमऊ देऊ निकाल दो।” तब दोनों ने कुठिले में पूँछ डाल दी और बंदर ने कहा, “निेकल हमऊ देऊ, निकल हमऊ देऊ” तब ब्च्चे ने लपककर दुम पकड़ ली। अब दोनों दुम को बाहर खींचे और बच्चा अंदर खींचे। तब पापा ने भी दुम पकड़ ली और अंदर बाहर खींचने लगे। “टग ऑफ़” वार हो गया। दोनों की दुम उखड़ गई और वे डर के मारे भागने लगे। भागते भागते बंदर बोला, “शेर मामा! तुमने तो कहा था कि तुम्हारे घर में हमऊ देऊ है पर तुम्हारे घर में तो पूँछ-उखाड़ घुसा था। तुमने अपनी भी पूँछ उखड़वा ली और मेरी भी उखड़वा दी। अगर हमऊ देऊ होता तो मैं निकाल देता।” शेर शरमा के भाग गया और लकड़हारा और उसका बच्चा शेर के घर में रहने लगे- कहानी खतम, पैसा हजम।
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