हमसफ़र

प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' (अंक: 185, जुलाई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

राह काटों भरी है
मेरे हमसफ़र,
है डगर थोड़ी मुश्किल
ये माना मगर,
जो तेरा साथ है
वो बड़ी बात है . . . 
 
हाथ में यूँ मेरे
जो तेरा हाथ है,
रोशनी हर जगह
थोड़ी सी रात है,
वो भी कट जाएगी
धुँध छँट जाएगी . . . 
 
तू मेरा हौसला
मैं तेरी ढाल हूँ,
आएगी जो बला
वो भी टल जाएगी,
प्रीत अपनी रहे
मिलके सुख दुःख सहें . . . 
 
बस यही कामना
प्रार्थना हम करें,
चाहना ये हमारी
वो पूरी करे,
जैसे आये ये दिन
दूर होते भले . . . .
 
चल दुआ ये करें . . . 
कामना हम करें . . .!

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