हो गया है क्या न जाने आदमी को

01-11-2019

हो गया है क्या न जाने आदमी को

बृज राज किशोर 'राहगीर'

हो गया है क्या न जाने आदमी को।
भीड़ बनकर मार देता है किसी को॥


देश हिंसा देखकर हतप्रभ खड़ा क्यूँ? 
न्याय का आसन भला ख़ाली पड़ा क्यूँ? 
साधकर चुप्पी हमारे रहबरों ने,
कर दिया यह मामला इतना बड़ा क्यूँ? 
सोचना तो चाहिए मिलकर सभी को॥


आ गया है दोस्तो कैसा ज़माना? 
ढूँढते हैं लोग हिंसा का बहाना।
आदमी जो काम पर निकला हुआ है, 
क्या पता किस वक़्त बन जाए निशाना? 
झेलना पड़ जाय इस दीवानगी को॥


रोष से रक्तिम सभी के नैन हैं अब।
घोर लाचारी भरे दिन-रैन हैं अब।
न्याय पाने से रहे महरूम जन ही,
न्याय करने के लिए बेचैन हैं अब।
हैं समर्पित आज सब गुण्डागिरी को॥


मौन सरकारें भला क्या कर रही हैं?
न्याय को रुसवाइयों से भर रही हैं।
भीड़ में क्या लोग उनके भी घुसे हैं,
इसलिए दंगाइयों से डर रही हैं? 
है नमन सरकार की दरियादिली को॥

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