हिन्दी भाषा में रोज़गार की सम्भावनाएँ

30-11-2014

हिन्दी भाषा में रोज़गार की सम्भावनाएँ

डॉ. हरेन्द्र सिंह

शोध सारः

रोज़गार मनुष्य के जीवन यापन का एक आवश्यक अंग है। वर्तमान संदर्भ में विज्ञान, अभियाँत्रिकी, तकनीकी, चिकित्सा, कम्प्यूटर के अतिरिक्त तमाम मानविकी विषयों के अध्ययन में रोज़गार की तमाम संभावनाएँ हैं। इसी प्रकार भारतीय भाषाओं विशेषकर हिन्दी भाषा का अध्ययन रोज़गारपरक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। मनुष्य जब जन्म लेता है तो वह सर्वप्रथम अपनी माँ बोली से ही सीखता है। इसी सीखने की प्रवृति में वह अपने आसपास के परिवेश को समझने लगता है। इस परिवेशगत समझ की संपूर्णता में ही उसकी जातीय चेतना समृद्ध होती है।

व्यावहारिक दृष्टि से भाषा को मनुष्यों के बीच विचार विनिमय का साधन कहा जा सकता है। भाषा की इसी प्रवृत्ति के कारण विश्व के अनेक देशों के व्यक्ति परस्पर एक दूसरे के संपर्क में आते हैं। अनेक भाषाओं, बोलियों को बोलने वाले लोगों के बीच संवाद स्थापित करने वाली भाषा संपर्क भाषा कहलाती है। इस संदर्भ में हिन्दी भाषा भारत सहित विश्व के अनेक देशों में संप्रेषण का आधार बनी है। विश्व में बोली जाने वाली भाषाओं में हिन्दी का दूसरा स्थान है। तथा लगभग 800 मिलियन से अधिक लोगों द्वारा हिन्दी भाषा बोली जाती है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343-1 में हिन्दी भाषा को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया है। यद्यपि अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग सरकारी कामकाज में प्रयुक्त किया जाता है, तथापि हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए भारत सरकार अभी भी प्रयत्नशील है। राज्य स्तर पर भी हिन्दी कई राज्यों की राजभाषा या राज्य भाषा के रूप में प्रयुक्त की जाती है। जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान तथा दिल्ली। कई अन्य राज्यों में हिन्दी भाषा को सहायक भाषा के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।

भारतवर्ष में राष्ट्रभाषा व राजभाषा के अतिरिक्त हिन्दी भाषा ने वैश्विक स्तर पर अपनी ख़ास पहचान बनाई है। भारतीय साहित्य, संस्कृति, दर्शन, इतिहास व ज्ञान विज्ञान को जानने के लिए विश्व के कई विश्वविद्यालयों में हिन्दी समेत कतिपय भारतीय भाषाओं के अध्ययन के लिए अलग से भाषा विभागों की स्थापना की गई है। जैसे सेंटर फार साउथ एशियन लैंग्वेजेज़ एण्ड कल्चर स्टडीज़, इत्यादि।

भूमण्डलीकरण, मुक्त व्यापार यूँ कहें बाज़ारवाद के चलते भी समूचा विश्व एक गाँव के रूप में विकसित हो रहा है। और वे परस्पर एक दूसरे देश की भाषा को सीखना चाहते हैं। यह मौजूदा समय की माँग भी है। अतः हिन्दी भाषा का अध्ययन व अध्यापन रोज़गार परक दृष्टि से किया जा रहा है।
हिन्दी भाषा को प्रयोजन मूलक बनाने व वर्तमान भाषाई प्रतिस्पर्धा की दौड़ में हिन्दी भाषा को अग्रसर करने के लिए तकनीकी भाषा के रूप में हिन्दी भाषा का पर्याप्त प्रचार प्रसार हुआ है। इसका श्रेय भारत सरकार के संचार और सूचना तकनीकी मंत्रालय के इलैक्ट्रानिक और इन्फॉरमेशन टैक्नोलॉजी विभाग को जाता है। इस विभाग ने वर्ष 1991 में टी. डी. आई. एल. (Tecchnology Development Indian Languages) की स्थापना की। हिन्दी के विकास के इस लक्ष्य में वैज्ञानिक व तकनीकी शब्दावली आयोग की भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। आयोग ने विज्ञान, दर्शन, इतिहास, समाजशास्त्र, कानून इत्यादि अनेक विषयों से संबंधित पारिभाषिक शब्दावलियों का निर्माण किया है। कम्प्यूटर व तकनीकी के क्षेत्र में हिन्दी से सम्बंन्धित अनेक सॉफ्टवेयरों और प्रोग्रामों का निर्माण किया गया है। जैसे सिद्धार्थ (DCM-1983), fipi (Hinditronics 1983), ISM, lleap, Leap Office (CDAC, Pune), GIST, Shreelipi, Sulipi, APS Akshar Unicode इत्यादि। इन सॉफ्टवेयरों के निर्माण से हिन्दी भाषा का प्रयोग सूचना तकनीक में सम्भव हो सका है।

टी. डी. आई. एल. के अनुसार भारत में मात्र 5 प्रतिशत लोग ही अंग्रेज़ी भाषा को समझते हैं। बाकी हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाओं का प्रयोग करते हैं। भले ही विद्यालयों व विश्वविद्यालयों में अंग्रेज़ी को छोड़कर हिन्दी व अन्य भाषाओं के अध्येत्ताओं को हेय दृष्टि से देखा जाता हो, किन्तु अब बदलते परिवेश के कारण हिन्दी भाषा के प्रति लोगों का नज़रिया बदलने लगा है। इसका कारण है हिन्दी भाषा का रोज़गार परक होना। बाज़ार से जुड़कर हिन्दी में रोज़गार की अपार सम्भावनाएँ पैदा की हैं। यही प्रवृत्ति हम हिन्दी साहित्य के पूर्व मध्यकाल में पाते हैं। तत्कालीन कवियों ने अपनी वाणी व उपदेशों को जन जन तक पहुँचाने के लिए हिन्दी भाषा के जन/लोक रूप को चुना। ताकि अधिक से अधिक जनसमुदाय तक वे अपने विचारों को पहुँचा सकें। इसी प्रकार वर्तमान परिवेश में किसी भी राष्ट्र में अपना व्यापार बढ़ाने के लिए वहाँ की भाषा व परिवेश (साहित्य, संस्कृति व समाज) को समझना आवश्यक है।

हिन्दी भाषा और रोज़गारः

हिन्दी भाषा का अध्ययन रोज़गार परक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसे हम कुछ बिन्दुओं में जान सकते हैं। सरकारी, अर्ध सरकारी, गैर सरकारी व निजी संस्थानों में हिन्दी भाषा रोज़गार के तमाम अवसर प्रदान करती है।

अध्यापनः

अध्यापन के क्षेत्र में हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाओं के द्वारा रोज़गार प्राप्त किया जा सकता है। इनमें प्रमुख हैं-

  1. स्कूल स्तर पर (कक्षा एक से कक्षा बारहवीं तक)।

  2. कॉलेज स्तर पर (स्नातक, स्नातकोत्तर व डिप्लोमा)।

  3. विश्वविद्यालय स्तर पर (स्नातक, स्नातकोत्तर, डिप्लोमा, एम. फिल. एवं पीएच. डी.)।

भारत सहित विश्व के कई देशों में हिन्दी का अध्ययन व अध्यापन किया जाता है। इसके लिए उन संस्थानों को पर्याप्त मात्रा में योग्य अध्यापकों की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त प्रवासी भारतीय व अन्य विदेशी लोग भारतीय साहित्य, संस्कृति, सभ्यता, इतिहास, को जानने समझने के लिए स्वयं तथा अपने बच्चों को हिन्दी भाषा की शिक्षा दिलवाना चाहते हैं। जो कि हिन्दी भाषा को रोज़गारपरक बनाती है।

अनुवादः

अनुवाद का क्षेत्र रोज़गार प्राप्त करने में महत्वपूर्ण है। मीडिया के क्षेत्र में हिन्दी अनुवादकों को रोज़गार के कई अवसर प्राप्त हो सकते हैं। क्योंकि प्रिंट व इलैक्ट्रानिक मीडिया में विभिन्न समाचार स्रोतों से अंग्रेज़ी व अन्य भाषाओं में समाचार प्राप्त होते हैं। उन समाचारों को एक अच्छा अनुवादक ही हिन्दी भाषा में अनुवादित कर सकता है। केन्द्र सरकार के कई विभागों, राज्य सरकार, अर्ध सरकारी विभागों में हिन्दी भाषा में कामकाज करना अनिवार्य है। इसलिए इन विभागों में बहुत प्रकार के पद सृजित किए गए हैं। जैसे हिन्दी अधिकारी, हिन्दी अनुवादक, हिन्दी सहायक या राजभाषा सहायक, आशुलिपिक, प्रबंधक इत्यादि। संघ लोकसेवा आयोग, स्टाफ सलेक्शन कमीशन हर वर्ष हिन्दी अधिकारियों, अनुवादकों, आशुलिपिकों के पदों के लिए विज्ञप्ति निकालते हैं। इसके अतिरिक्त केन्द्रीय अपराध प्रयोगशाला, भारतीय जीवन बीमा निगम, बी. आर. डी. ओ., सरकारी व गैर सरकारी बैंक, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, अर्ध सैनिक बल में भी हिन्दी अधिकारियों व अनुवादकों के पद भरे जाते हैं।

संचारः

संचार माध्यमों में इलैक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया में हिन्दी भाषा में रोज़गार की तमाम अवसर प्राप्त होते हैं। दूरदर्शन का राष्ट्रीय व अन्य क्षेत्रीय चेनल, डी. डी. भारती, डी. डी. न्यूज़, डी. डी. र्स्पोट्स, लोक सभा टी. वी. व राज्य सभा टी. वी. हिन्दी भाषा में समाचार प्रसारण, वृत्तचित्र, धारावाहिक, कृषिदर्शन, ज्ञानदर्शन, स्वास्थ्य, समाज कल्याण व साहित्य से सम्बंधित कई प्रकार के कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। इसके अतिरिक्त कई निजी टी. वी. चैनल्स भी हिन्दी समाचारों के प्रसारण के अतिरिक्त हिन्दी भाषा में कई प्रकार के कार्यक्रमों का प्रसारण करते हैं। दृश्य माध्यमों के बढ़ते प्रभाव से रेडियो का अस्तित्व समाप्त नहीं हुआ है। बल्कि रेडियो ने भी इस प्रतिस्पर्धा के दौर में नए आयाम स्थापित किए हैं।

प्रिंट मीडिया के क्षेत्र में भी हिन्दी भाषा में रोज़गार के कई अवसर पैदा हुए हैं। आज भारत में कई प्रमुख हिन्दी दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक पत्र एवं पत्रिकाएँ प्रकाशित हो रही हैं।

अतः संचार माध्यम रोेजगार के तमाम अवसर उपलब्ध करता है। संपादक, उपसंपादक, सह संपादक, संवाददाता, प्रूफरीडर, एंकर इत्यादि पदों पर हिन्दी भाषा का अच्छा ज्ञान रखने वाला कोई भी व्यक्ति काम कर सकता है। कई पत्र पत्रिकाओं के आनॅ लाइन संस्करण (e-paper) भी उपलब्ध है। इसलिए हिन्दी भाषा पर अच्छी पकड़ रखने वाले तथा कम्प्यूटर व तकनीकी का विशेष ज्ञान रखने वाले लोग इस क्षेत्र में रोज़गार प्राप्त कर सकते हैं। स्वतंत्र रूप से लिखने वाले लेखक विविध प्रकार का उपयोगी साहित्य जैसे कविता, कहानी, लेख, फीचर, धारावाहिक, पर्यटन, विज्ञान, तकनीकी, समाजशास्त्र इत्यादि लिखकर प्रिंट व इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से रोज़गार प्राप्त कर सकते हैं।

भारत सरकार व राज्य सरकारों ने अपने-अपने जनसम्पर्क विभागों की स्थापना की है। इनके माध्यम से सरकार द्वारा चलाई जा रही कई प्रकार की योजनाओं को जनता तक पहुँचाया जाता है। तथा लोक मत भी एकत्रित किया जाता है। इसके लिए उन विभागों में जनसम्पर्क अधिकारी की नियुक्ति की जाती है।

बाजारः बाज़ारवाद के चलते हर उत्पादक अपने उत्पाद को अधिक से अधिक उपभोक्ताओं के तक पहुँचाने के लिए विज्ञापन का सहारा लेता है। विज्ञापनों के प्रासारण के लिए वह संचार माध्यमों का सहारा लेता है। तथा बाज़ार के अनुरूप ही वह उस उत्पाद के विज्ञापन की भाषा को चुनता है। कई भारतीय व विदेशी कम्पनियाँ अपने उत्पादों की बिक्री के लिए हिन्दी भाषा में विज्ञापन तैयार करवाते हैं। इसके लिए हिन्दी भाषा का अच्छा ज्ञान, बाज़ार पर अच्छी पकड़ व लोगों की रुचि का ध्यान रखना आवश्यक है। अतः हिन्दी विज्ञापन का क्षेत्र भी रोज़गार की सम्भावनाएँ प्रस्तुत करता है।
पर्यटनः पर्यटन के माध्यम से भी हिन्दी भाषा में रोज़गार की अपार सम्भावनाएँ हैं। भारत में प्रतिवर्ष हज़ारों लाखों पर्यटक आते हैं। उन्हें हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाओं का ज्ञान नहीं होता है। यहाँ तक कि कई लोग अंग्रेज़ी भाषा को भी अच्छी तरह से नहीं समझ सकते हैं। ऐसी स्थिति में भारतीय पर्यटक स्थलों, तीर्थस्थानों, ऐतिहासिक स्थलों, स्मारकों इत्यादि की जानकारी एक द्विभाषिया (गाइड) ही दे सकता है। अतः द्विभाषिए के रूप में एक व्यक्ति हिन्दी भाषा के आधार पर अपना जीवन यापन कर सकता है।

भारत में कई प्रतियोगी परीक्षाओं में हिन्दी विषय को अनिवार्य या वैकल्पिक रूप रखा जाता है। हिन्दी भाषा के शिक्षण के लिए भारत के कई राज्यों में हिन्दी विषय को 10वीं या 12वीं कक्षा तक अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाता है। अनेक महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा को बी.ए., एम. ए., एम. फिल., पीएच. डी. स्तर पर पढ़ाया जाता है। इसके अलावा भाषाशास्त्र में एम.ए., अनुवाद में डिप्लोमा, जनसंचार में डिप्लोमा, एम. ए., हिन्दी में सृजनात्मक डिप्लोमा, प्रयोजमूलक हिन्दी में डिप्लोमा, बी. एड. व एम. एड. में हिन्दी विषय का शिक्षण इत्यादि कोर्स संचालित किए जाते हैं। जिनकी योग्यता या उपाधि हासिल कर कोई भी व्यक्ति अपने सुनहरे भविष्य की तलाश कर सकता है।

निष्कर्षः

अतः कह सकते हैं कि वर्तमान प्रतिस्पर्धा के दौर में हिन्दी भाषा ने रोज़गारपरक दृष्टिकोण से अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। क्योंकि भाषा की प्रवृत्ति सरलीकरण है। हिन्दी भाषा की जननी संस्कृत है। वर्षों से लगातार कुछ जोड़ते व कुछ छोड़ते हुए इस भाषा ने जो स्वरूप धारण किया है उसी का फल है कि यह एक विशाल जन समुदाय को अपने आप में समेटे हुए है। भविष्य में भी हिन्दी कई भीषण चुनौतियों का सामना करते हुए और अधिक रोज़गार परक भाषा बन सकेगी। वही भाषा अधिक दिनों तक जीवित रह सकती है, समाज में अधिक व्यावहारिक रूप धारण कर मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति समयानुसार कर सकती है।

संदर्भ:

रोज़गार समाचार पत्र, इन्टरनेट पर उपलब्ध सामग्री।

डॉ. हरेन्द्र सिंह,
पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़-160014
ई मेलः hsnegi08@yahoo.co.in 
मोबाइलः 09417375988, 09915804229

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