हे उदासी

15-05-2021

हे उदासी

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 181, मई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

हे उदासी!
निश्चेष्ट, निश्चल,
बोल कुछ, क्यों मौन है?
अस्तित्व तू मेरा समेटे,
वेदना-पट में है लपेटे।
हार की उन आहटों से,
डरी, सहमी, सिसकी हुई सी,
तू कौन है? 
उत्साह की अद्भुत तरंगों,
से दूर, इन निर्जन वनों में,
क्यों भटकती मौन है?
हे उदासी! निश्चेष्ट, निश्चल,
बोल कुछ क्यों, मौन है?

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