हरित वसुंधरा

01-08-2021

हरित वसुंधरा

अनिल मिश्रा ’प्रहरी’ (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

देख  अम्बर  मेघ  फूलों  के  अधर  लाली
प्रेमरत  मधुकर, मगन  मकरंद, तरु-डाली,
वल्लरी  झूमे,  पवन  मुकुलित  कली  चूमे
कर रही अरुणिम प्रभा रुत मत्त, मतवाली।
 
जी  उठी  सरिता, सरोवर  नीर  छलकाये
पीत-पट नित डाल दादुर  गीत  नव  गाये,
किंकिणी कटि बाँध सजनी  झूलती  झूले
गंध अनुपम अंग सुरभित की बिखर जाये।
 
है  निखर  आयी  छटा  धरणी  बनी  रानी
शोभता  परिधान  मंजुल  देह   पर   धानी,
षोडशों   सिंगार,  वसुधा-अंग  रस-संचार
मेघ पुलकित ले खड़ा नत स्वर्ग का  पानी।

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