हरि वंदना
लवनीत मिश्रहे हरि मधुसूदन,
हे जगत गुणधाम,
त्राहि त्राहि करे हृदय,
अरज सुनो श्री राम,
माया ने जीवन ठगा,
लोभ से मन भरमाया,
आसक्त हो मद काम में,
व्यर्थ समय गँवाया,
सुख की इच्छा सब करे,
दुख से सबको बैर,
सुख दुख भ्रम का जाल है,
जो जकड़े हाथ और पैर,
नारायण विनती सुनो,
शरण रखो निज धाम,
चरनन मे भक्ति रहे,
जपे हृदय हरि नाम।
1 टिप्पणियाँ
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apkee rachnaao me dam hai....... bahut sunder