जीने के सिवा
ज़िदगी का कोई उद्देश्य नहीं है
मनुष्य के हज़ार गुण हैं
हज़ार धर्म हैं
कोई स्वेच्छा
और हर्ष से जी जाता है
कोई विवशता
और विषाद में जी पाता है
कोई शब्दों में जीता है
तो कोई शब्दों के विलोम में
अमीर ग़रीब
सुख दुख
महल झोपड़ी
मालिक नौकर
सुंदर कुरूप
राजा प्रजा
भक्त भगवान
मूर्ख विद्वान
गुरु शिष्य
नर्तक दर्शक
मगर हर कोई जीता है
सिर्फ़ जीता है
जीने के सिवा
कोई कुछ नहीं करता