हँसी का मोल

01-02-2021

हँसी का मोल

प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' (अंक: 174, फरवरी प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

"बंसी काका ! ज़रा देखना तो, माली ने फिर से साईकल बीच रास्ते में तो नहीं खड़ी कर दी . . .! बड़े साहब आते ही होंगे . . . और हाँ माली से कहना पीले नहीं सुर्ख़ गुलाबों का गुलदस्ता तैयार करे, साहब को वही पसन्द हैं . . . 

 . . .अरी बिमला, जल्दी से कढ़ाई चढ़ा, और कचौड़ी बनानी शुरू कर . . .देखियो एकदम गोल बने . . .और गुलाबीपन पे ही हो . . .तेज़ न सिक जाए . . .वरना साहब नहीं खाएँगे . . .

 . . . . . .अरे छोटू, अब तू कहाँ ग़ायब हो गया  . . .साहब ही चप्पल सही जगह पर रख वार्ना नाराज़ होंगे . . .ये छोटू भी न  . . .।"

बस कुछ इसी तरह की अफरा-तफरी मचती है जब पिताजी कचहरी से लौटते हैं, माँ सब को हिदायत देती, यूँ ही बड़बड़ाती फिरती हैं।

आज का दिन तो वैसे भी ख़ास था। फिर, एक जाने-माने उद्योगपति के साहबज़ादे ने कुछ छोटे-मोटे बेकार से भिखारियों को कुचल दिया था, और बाबूजी की कचहरी में जय-जयकार हो रही थी . . .ऐसे केसों में उनकी महारत जो ठहरी!!

पूरी शाम नेताओं और उद्योगपतियों की बधाई के बीच जश्न मनने वाला था . . .आख़िर, कल उन्हें भी तो पिताजी की ज़रूरत पड़ सकती है . . .!!!

. . .और इस पूजा को भी आज ही ज़िद चढ़ी है…

"आज कुछ मत कहियो मेरी बहन,  . . .मुझे थोड़ा वक़्त दे . . . मैं मौक़ा देख कर ख़ुद उनसे बात करूँगी . . . पर बात भी क्या करूँगी? . . .तुझे भी, कोई और नहीं मिला . . . एक से बढ़कर एक रिश्ते आ रहे हैं . . .न जाने उस लड़के ने तुझपर क्या जादू किया है  . . . पिताजी हरगिज़ राज़ी नहीं होंगे . . .आख़िर क्या दिखता है तुझे उसमें . . ."

"दीदी . . .वो मुझे हँसाता है . . . . . .!"
 

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