हमारी नियति

01-09-2021

हमारी नियति

राजनन्दन सिंह (अंक: 188, सितम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

हम दुम सहलाते हैं 
नील सियारों की 
वह बाघ बन जाता है
व्यभिचारों के
लकीर पीटना
हमारी नियति है
 
पहनकर मुखौटा 
हमें लूटता है कोई 
हम गरियाते हैं किसी और को
 
हमें जो छलता है
हम पूजते हैं उन्हें
आँखें बंद कर
बिना बुद्धि के
बिना विचारों के 

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