हम भी यहीं से गुज़रे थे साथी

15-06-2021

हम भी यहीं से गुज़रे थे साथी

महेश रौतेला (अंक: 183, जून द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

हम भी यहीं से गुज़रे थे साथी
अकेले भी हम मीलों चले थे,
वनों में भी गा-गा कर जिये थे
हम भी यहीं से गुज़रे थे साथी।
 
काँटों से मिलना हमने नहीं छोड़ा
हमने लिखा फिर हमने मिटाया,
रास्तों पर चलना हमने नहीं छोड़ा
हम भी भीड़ से गुज़रे थे साथी।
 
नदी की धारा में हम भी बहे थे
किनारों से आगे हम भी चले थे,
परिवर्तन की बात हम भी किये थे
हम भी झंडे को पुकारे थे साथी।
 
दिव्य प्रकाश में हम भी खड़े थे
अपनी ही सूरत ढूँढ़ने लगे थे,
प्यार की राह हम भी लिये थे
तुम भी यहीं से गुज़रे थे साथी।

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