हलधर को तू प्रणाम कर

01-08-2020

हलधर को तू प्रणाम कर

सिद्धि मिश्रा (अंक: 161, अगस्त प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

चमक रही है श्रम से जिनके,
दूर्वादल की हरी दरी,
धूसर धूमिल धोती जिनकी,
मस्तक पर है शिकन भरी,
परार्थ से कुछ सीख उसके,
श्रम से अपना तू काम कर,
अलख दुख को देख उसके,
हलधर को तू प्रणाम कर।


लोकोपकार में रत है जो,
सर्वोदय ख़ातिर ध्रुव धीर,
साल रही है हिय को जिसके,
ग़रीबी की बेबस पीर,
कर्मठता का आयुध लेकर,
निर्जन भू पर प्रहार कर,
आर्त को तू भाँप उसके,
हलधर को तू प्रणाम कर।


हरियाली प्रतियाम बिखेरे,
स्व जीवन में जरदी फैली,
निर्दय जगत में जीवित जिसकी,
आशा की ख़ाली झोली,
भू को मंगल मय बना तू,
स्वेद का सम्मान कर,
स्वार्थ को तू त्याग अपने,
हलधर को तू प्रणाम कर।

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