काफ़ी समय पहले की बात है। एक गाँव में एक किसान रहता था। वह रोज़ सुबह हल और अपने बैलों के साथ खेत पर पहुँच जाता। खेतों को जोतता-बोता। ख़ूब मेहनत करता। उसके खेत भी सोना उगलते थे। भरपूर फ़सल होती जिसे बेच कर किसान आराम से रहता था।

किसान बहुत अच्छा था। वह बैलों की भी ख़ूब सेवा करता। रोज़ हरी-हरी घास खिलाता। उन्हें नहलाता फिर उनकी मालिश करता। इससे उसके बैल भी ख़ूब तंदुरुस्त हो गये थे। किसान ने उनके गले में सुंदर सी घंटिया बाँध दी थीं। जब वे चलते तो घंटियों की आवाज़ सुन उसे बहुत अच्छा लगता।

किसान हल का भी बहुत ध्यान रखता था। रोज़ उसकी धूल साफ़ करके उन्हें चमकाता। तीज-त्योहारों पर उनकी पूजा करता।

धीरे-धीरे बैलों और हल को अपने-अपने ऊपर बहुत घमंड हो गया। बैलों को लगता कि किसान के घर ख़ुशहाली उनके कारण है। अगर वे खेत जोतने न जायें तो वहाँ एक दाना भी पैदा न होगा। उधर हल को लगता कि खेतों की असली जुताई तो वे करता है। बैल तो खाली खेत में टहलते रहते हैं।

एक दिन दोनों में बहस हो गयी। बैलों ने कहा, "खेत हम जोतते हैं। उसमें सारी मेहनत हमारी लगती है। इसीलिये किसान हमें अपने हाथों से खिलाता है।"

"जी नहीं, धरती का सीना फाड़ कर ताज़ी मिट्टी बाहर हम लाते हैं। इसलिये असली जुताई हमारी हुई। तभी किसान हमारी पूजा करता है," हल ने अकड़ते हुये कहा।  

दोनों में झगड़ा बढ़ गया तो वे फ़ैसला कराने किसान के पास पहुँचे। किसान दोनों को बराबर प्यार करता था। कुछ सोच कर उसने बैलों से कहा, "तुम्हारा कहना सच है। तुम बहुत मेहनत करते हो। जाओ आज खेत तुम जोत आओ।"

बैल ख़ुशी से उछलते-कूदते खेत पहुँच गये। वे पूरा दिन खेत में चलते रहे। शाम को किसान ने आ कर देखा खेत ज़रा सा भी नहीं जुता था। किसान ने कुछ नहीं कहा। वह बैलों को ले कर चुपचाप घर लौट आया।

अगले दिन वह हल को कंधे पर लाद कर खेत पर पहुँचा। वहाँ उसने हल के नुकीले फल को ज़मीन के भीतर घुसा दिया फिर बोला, "तुम भी मेरे लिये बहुत मेहनत करते हो। आज यह पूरा खेत तुम जोत डालो।"

हल को वहीं छोड़ किसान घर लौट आया। बैल खेत में बहुत धीरे-धीरे चलते थे इसलिये ज़्यादा जुताई नहीं हो पाती थी। आज हल को अपनी क़ाबलियत साबित करने का मौक़ा मिला था। उसने सोचा कि शाम होने से पहले ही वह पूरा खेत जोत डालेगा।

किसान के जाने के बाद उसने खेत को जी भर कर देखा फिर उसे जोतने आगे बढा। मगर यह क्या? वह तो अपनी जगह से टस से मस भी नहीं हो पाया। जिस खेत को वह दौड़ते हुये जोतता था आज उसमें हिल भी नहीं पा रहा था। उसने बहुत ज़ोर लगाया। पसीने से तर-बतर हो गया पर एक इंच भी आगे न खिसक सका। 

शाम को किसान आया तो देखा आज भी खेत ज़रा सा भी नहीं जुता था। उसने कुछ नहीं कहा। चुपचाप हल को भी घर ले आया।

हल और बैल, दोनों ही अपनी-अपनी असफलता से बहुत दुखी थे। दोनों एक दूसरे से आँखें चुरा रहे थे। यह देख किसान ने समझाया, "हम सबकी शक्ति एकता में है। अलग-अलग हो कर हम सब अधूरे हैं। इसलिये  आपस में लड़ने के बजाय अगर हम मिल जुल कर काम करें तो कोई भी काम असंभव नहीं है।"

बात हल और बैल की समझ में आ गयी। दोनों में एक बार फिर दोस्ती हो गयी। अगले दिन जब बैल घंटियाँ बजाते हुये खेत की ओर चले तो किसान ने हल को अपने कंधों पर लाद लिया। उस दिन सभी ने मिल कर ख़ूब जुताई की। थोड़े ही दिनों में खेतों में हरी-भरी फ़सल लहलहाने लगी। 

तभी से इन तीनों की दोस्ती आज तक क़ायम है। 

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